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जब युद्ध का बारहवां वर्ष चल रहा था. अंतिम चरण में देवताओं की पराजय सुनिश्चित होने लगी तो इंद्र को पराजय का भय सताने लगा. इंद्र भयभीत होकर गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे.
उन्होंने बृहस्पति से अपनी रणनीति की समीक्षा करने को कहा. इंद्र ने कहा कि सिर पर आ पहुंची पराजय से बचने का कोई उपाय तत्काल निकालिए. यदि ऐसा न हुआ तो हम असुरों के अधीन हो जाएंगे.
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युद्ध ऐसी स्थिति में पहुंच चुका था कि इंद्र की सेना कुछ नहीं कर सकती थी. बृहस्पति को अपने शिष्यों की रक्षा हर हाल में करनी थी. उन्होंने चतुराई से एक उपाय किया.
बृहस्पति ने इंद्र की पत्नी शची बुलवाया. शचि को विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार करने का ज्ञान देकर देवगुरू ने एक आदेश दिया.
बहस्पति ने कहा- इस रक्षासूत्र को श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन उचित मंत्रों के साथ इंद्र की दाहिनी कलाई में बांध दो. देवराज युद्ध हार ही रहे हैं, संभवतः इस रक्षासूत्र से इंद्र को लाभ हो जाए.
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शचि ने देवगुरू की बात का अक्षरशः पालन किया. विधि-विधान से व्रत करने के बाद न सिर्फ इंद्र अपितु सभी देवताओं को रक्षासूत्र से बांध दिया.
इतनी कथा सुनाने के बाद असुरगुरू बोले- दैत्यराज, शची ने बृहस्पति के कहे अनुसार इंद्र को रक्षासूत्र बांधकर देवताओं को अजेय बना दिया. फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई. उसी के तेज और प्रभाव से तुम सब इंद्र से परास्त हुए हो.
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यह सुनकर बलि निराश हो गए. उन्होंने शुक्राचार्य से इसकी काट पूछी.
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