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मेरा वर्ण व्याध का है. उसी के अनुरूप शिकार का कार्य करता हूं. यदि मैं इतना बुरा हूं और मेरे समीप रहने से आपको इतना ही कष्ट है तो आपको मेरे निवास स्थान को छोड कर तत्काल कहीं चले जाना चाहिए.

आप मुनि हैं समस्त विश्व में जा सकते हैं पर मेरा यही शिकार क्षेत्र यही निवास है मैं कहां जाऊंगा. मैं क्यों बनाऊं दूरी, आप ही कहीं दूर चले जाइए. मैं तो यहां से कहीं नहीं जाने वाला, आप सोचें कि आपको क्या करना है.

व्याध की बात से राम को भी क्रोध हुआ. वह बोले- तुम जीवहत्या करते हो. तुमसे बड़ा पापी कोई नहीं. सभी जीवों को प्राण से प्रेम होता है और तुम उसका ही हरण करते हो. सभी जंतु तुम्हें धिक्कारते हैं. तत्काल यहां से चला जा. अब और रुके तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा.

व्याध बोला- आपकी बात से मुझे क्रोध तो आता है पर आप विप्र हैं इसलिए मैं चुप हूं. भगवान रुद्र को प्रसन्न करने का आपके प्रण पर मुझे हंसी आती है. इस साधारण सी तपस्या से आप शिवजी को प्रसन्न करेंगे. आपको कुछ ऐसा करना होगा जो किसी ने अब तक न किया हो.

सच तो यह है कि आपने जो अपनी माता का वध किया है उससे हर ओर आपकी निंदा हो रही है. उसी से बचने को आप यहां छिपे हैं. ब्रह्महत्या जैसे जघन्य पाप से मुक्ति के लिए तप कर रहे हैं. गुरुपत्नी से व्याभिचार और मां के द्रोही की तो कहीं से क्षमा नहीं है. आप मुझे हिंसक कह रहे हैं!
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