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पिछली दो कथाओं में आपने पढ़ा कि पितामह भृगु के आदेश से राम शिवजी से समस्त शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हिमवान पर्वत पर घोर तप करने लगे. उनके तप की चर्चा देवलोक तक होने लगी.
तभी एक व्याध राम के पास आया. उसने स्वयं को इस क्षेत्र का स्वामी बताया. विशालकाय व्याध ने कहा स्वयं इंद्र उसके क्षेत्र में अतिक्रमण का साहस नहीं जुटा पाते फिर राम ने ऐसा दुस्साहस क्यों किया. व्याध और राम के बीच तर्क होने लगा.
व्याध यानी शिकारी के कारण राम का तप बाधित हो रहा था पर यह जानने के लिए आखिर यह है कौन, कहीं तप भंग करने के लिए आया कोई असुर तो नहीं है, यह पता लगाने के लिए राम उस शिकारी की बात ध्यान से सुन रहे थे.
शिकारी ने अपने पराक्रम के बारे में बताकर राम से पूछा- आप क्यों आए हैं? यहां से कहीं और जाने का कोई इरादा है अथवा नहीं. ऐसा लगता है कि आप मेरे क्षेत्र में कोई सिद्धि प्राप्त करने की चेष्टा कर रहे हैं. आपको उसका अभिप्राय बताना होगा.
राम बात सुनकर एक क्षण हंसे. फिर सोचने लगे कि इसकी वाणी तथा स्पष्ट उच्चारण इसके शरीर और इसके कर्म के अनुसार नहीं है. यह वही है जो दिख रहा है अथवा कोई माया है. कुछ सोचने के बाद राम ने गंभीर वाणी में बोलना आरंभ किया.
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