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भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए. उन्होंने 133 अश्वमेध यज्ञ करके संपूर्ण धरा को एकछत्र के अंतर्गत किया और उसका नाम भारतवर्ष पड़ा. उनकी कीर्ति ऐसी थी कि वह स्वर्ग को धरती से हाथ उठाकर छू सकते थे.
भरत की रानियों से तीन पुत्र हुए लेकिन भरत को तीनों में से किसी में भी अपने उत्तराधिकारी का गुण नहीं दिखा. इस भय में कि कहीं अयोग्य पुत्र जन्म देने के कारण महाराज उनका त्याग न कर दें, रानियों ने पुत्रों की हत्या कर दी.
इससे भरत के वंश को आगे बढ़ाने का संकट पैदा हो गया. वंश को आगे बढ़ाने के लिए भरत ने मरुत्सोम नामक यज्ञ किया. मरूदगणों ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने द्वारा पालित भरद्वाज नामक पुत्र प्रदान किया.
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