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इस सोच विचार में इतना समय निकल गया कि उनकी अवस्था ठीक न रही. विवाह करने के लिए रुचि अपनी वृद्धावस्था के विषय में सोचकर चिंतित थे क्योंकि न केवल यौवन बीत चुका था. तपस्या से उनका शरीर जर्जर हो गया था.

ऐसे में कौन उन्हें अपनी कन्या देगा? रुचि की चिंता पितरों तक पहुंची तो पितरों ने लीला से उनकी बुद्धि में प्रेरणा भरी कि तुम ब्रह्माजी की उपासना करो. वह पितामह हैं. उनकी कृपा से तुम्हारा मार्ग प्रशस्त होगा.

रुचि ने इस ज्ञात प्रेरणा से प्रेरित हो कर ब्रह्मा जी की आराधना आरंभ कर दी. शीघ्र ही ब्रह्मा जी महात्मा रुचि के तप से संतुष्ट हो गए. प्रसन्न होकर उन्हें वर प्रदान किया और कहा कि तुम श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति हेतु अपने पितरों की स्तुति करो,

ब्रह्मा जी ने बताया, ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसे तुम्हारे पितर संतुष्ट होकर तुम्हें न दे सकें. रुचि ने ब्रह्माजी के कथनानुसार एक नदी के एकान्त तट पर पितरों का तर्पण करने के बाद उनकी पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से स्तुति की.

उस समय रुचि ने जो स्तुति की उसे ‘पितृ-स्तोत्र’ का नाम दिया गया. स्तुति पूरी होते होते रुचि के समक्ष एक बहुत ऊंचा तेज पुंज प्रकट हुआ, जो पूरे आकाश में व्याप्त हो गया.

तत्पश्चात् उस तेज से पितर प्रकट हुए, रुचि ने फल, फूल तथा अन्य सामग्री उन्हें अर्पित की, पितरों ने सब ग्रहण किया. पितर उनके स्वागत से बहुत प्रसन्न हुए.

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