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महाकाली ने देवताओं की रक्षा के लिए विकराल रूप धारणकर युद्धभूमि में प्रवेश किया. महाकाली ने राक्षसों का वध करना आरंभ किया लेकिन उनके आक्रमण के कारण जल्द ही युद्धभिमि रक्तबीजों से भर गई.
वे सभी रक्तबीज मिलकर महाकाली पर तीखे बाण और अन्य अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार करने लगे. अभ तो महाकाली के क्रोध की कोई सीमा ही न रही. उन्होंने अपनी सहायिका देवियों को उत्पन्न किया.
उन सभी भयानक देवियों के हाथ में खप्पर था. महाकाली जैसे ही किसी असुर की गर्दन काटतीं, दूसरी देवियां उसके रक्त को अपने खप्पर में भरकर पी जातीं. इस तरह रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरने ही न पाता.
उन असुरों का सिर काटकर महाकाली अपने गले में मुंडमाला की तरह घारण कर लेतीं. युद्धभुमि में रक्तबीजों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि मां महाकाली लगातार कई वर्षों तक उनका शीश काटती रहीं.
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