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हरिनाथ घबरा गया.

उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘नाग देवता! मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा. क्यों मेरे पीछे पड़े हो? व्यर्थ में किसी को सताना अच्छी बात नहीं है.’ लेकिन नाग ने जवाब में जोरदार फुंफकार की.

जब हरिनाथ ने देख लिया कि कोई रास्ता नहीं तो उसने वह बांस साँप को दे मारा. धरती से टकराते ही बांस के दो टुकड़े हो गए. उसके भीतर भरी हुईं मोहरें बिखर गईं. पंडित तो आश्चर्य से देखता रह गया. एक पल के लिए वह साँप को भूल गया.

फिर नजर घुमाई तो देखा कि बांस की चोट से साँप की कमर टूट गयी है और वह लहूलुहान अवस्था में झाड़ी की ओर भागा जा रहा है. हरिनाथ लक्ष्मी माता की जय-जयकार करने लगा!’

लक्ष्मी ने अपनी बहन ज्येष्ठा से पूछा, ‘कहो बहन! बड़प्पन की थाह अभी मिली या नहीं? श्रेष्ठता तो किसी को कुछ देने में प्राप्त होती है छीनने में नहीं.’ ज्येष्ठा ने कोई उत्तर नहीं दिया. वह चुपचाप उदास खड़ी रहीं.

इसलिए कहते हैं छीनने वाले से बड़ा होता है देने वाला. छीनने वाला अपने पर इतरा सकता है. उसका दंड भी मिलता है जैसे कमर की चोट के रूप में मिला ज्येष्ठा को. देने वाले के लिए जयकारे लगते हैं, पूजा होती है.

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