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तुलसी ने गणेशजी को बिना कारण शाप दिया था. नारायण की भक्त होने के बावजूद तुलसी को अपने रूप का इतना मान है. इस बात से गणेशजी को बड़ा गुस्सा आया.
उन्होंने भी तुलसी को पलटकर शाप दिया- तुम्हें अपने रूप-गुण पर बड़ा मान है. विवाह के लिए इतनी लालायित हो. तुम्हारा विवाह असुर से होगा. सुंदर शरीर समाप्त हो जाएगा और तुम वृक्ष बन जाओगी.
असुर से विवाह और वृक्ष बन जाने का शाप सुनकर तुलसी रोने लगीं. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. वह गणेशजी के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगीं.
गणपति का क्रोध शांत हुआ. उन्होंने कहा- मेरा शाप खाली तो नहीं जा सकता लेकिन इस शाप को वरदान के रूप में बदलने का इंतजाम कर देता हूं.
गणेशजी ने कहा- तुम नारायण भक्त हो. वृक्ष रूप में तुम भगवान नारायण को अत्यंत प्रिय हो जाओगी और पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा होगी.
नारायण के आशीर्वाद से तुम्हें हर पूजा संस्कार में सम्मान जनक स्थान मिलेगा. तुम पूजा जाओगी लेकिन मेरे पूजन में तुम्हारा प्रयोग वर्जित होगा. तुलसी के शाप का प्रभाव यह हुआ कि गणेश की दो पत्नियाँ ऋद्धि और सिद्धि हुईं.
गणेशजी के शाप और वरदान का प्रभाव यह हुआ कि तुलसी का विवाह असुरराज जलधंर से हुआ और वह तुलसी का पौधा बनीं. उनके प्रिय ठाकुरजी शालिग्राम रूप में उनके साथ पड़े रहे.
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम् मंडली
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