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माता ने कहा थोड़ी देर बाद आना. अभी मेरे शरीर में धूल लगी है. जोर से गिरने के कारण शरीर में दर्द भी हो रहा है. वह अभी औषधि लगाकर विश्राम कर रही हैं.

गणेशजी ने दर्द का कारण पूछा तो पार्वती देवी ने कहा- पुत्र जिस बिल्ली को तुमने घूमाकर फेंका, वह मैं ही थी. संसार के सभी जीव मेरे अंश है. इसलिए किसी को कष्ट न दिया करो.

गणेशजी को बड़ा दुख हुआ कि उनके कारण माता को कष्ट हुआ. अब माता ने यह बात तो पुत्र को दया भाव सिखाने के लिए जानबूझकर कह दी थी लेकिन गणेशजी ने अपने तरह से इसकी व्याख्या करके एक अन्य समस्या पैदा कर दी.

गजानन इस बात को मन में गांठ बांध कर बैठ गए कि संसार के सभी जीव मेरी माता के अंश है. इस कारण उन्हें विवाह नहीं करना चाहिए. उन्होंने ब्रह्चारी रहने का तय कर लिया और तप में लीन हो गए.

वह गंगा तट पर तप कर रहे थे. इसी बीच असुर कुल में जन्मी तेजस्विनी वृंदा जिन्हें तुलसी कहा जाता है, अपने लिए योग्य वर की तलाश में निकलीं थीं.

सारे संसार में वृंदा के योग्य कोई वर नहीं मिला. घूमते-घूमते वह गंगातट पर पहुंची. वहां उन्होंने तपस्या में लीन गणेशजी को देखा और उन पर मोहित हो गईं.

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