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उनके शरीर से फूटी महान जलराशि में जब पंचक्रोशी डूबने लगी, तब निर्गुण निर्विकार भगवान शिव ने उसकी रक्षा के लिए शीघ्र ही अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया.
उसके बाद श्रीहरि अपनी पत्नी के साथ विश्राम करने लगे. उनकी नाभि से एक कमल प्रकट हुआ जिससे ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई. कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति भी निराकार शिव के निर्देश से हुई थी.
शिव ने ब्रह्माजी सृष्टि की रचना का आदेश किया. ब्रह्माजी ने चौदह भुवन वाले ब्रह्माण्ड की रचना की. भगवान शिव सोचने लगे कि कर्मबंधन में फंसा प्राणी अगर मुझे प्राप्त करना चाहे तो वह कैसे मुझसे आकर मिले.
यह विचार आते ही महादेव ने अपने भक्तों को कर्मबंधनों से मुक्त कर उनके सर्वकल्याण के लिए पंचक्रोशी को अपने त्रिशूल से उतारकर इस जगत में छोड़ दिया.
भक्तों को अपने भगवान से भेंट की व्यवस्था देते हुए स्वयं परमेश्वर ने ही वहां एक अविमुक्त लिंग की स्थापना की थी. उन्होंने अपने अंशभूत हर (शिवरूप) को निर्देश दिया कि वह कभी भी काशी क्षेत्र का त्याग न करें.
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