करवा चौथ को करक चतुर्थी या कड़वा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. करवा चौथ का व्रत स्त्रियां पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं.  कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को सुहागिनें गणेश, शिव-पार्वती, कार्तिकेय और चंद्रमा का पूजन करके व्रत खोलती हैं.

 

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करवा चौथ व्रत-पूजन कैसे करेंः 10 STEPS

1. प्रातः स्नानादि करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें. ‘मम् सुख सौभाग्य पुत्र पौत्र आदि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये।’
(मैं…अपना नाम लें- सुख,सौभाग्य, पुत्र, सुख-समृद्धि आदि की प्राप्ति के लिए इस करक चतुर्थी के व्रत का संकल्प करती हूं )

2. पूरे दिन निर्जला व्रत रहें. बीमार स्त्रियों के लिए निर्जल रहना जरूरी नहीं है. यदि उनके लिए दवाई खाना अनिवार्य है, तो वे दवा खा सकती हैं. शास्त्रों में रुग्ण यानी रोगी और वृद्धों के लिए सभी छूट दी गई है.

3. दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे हुए चावलों के घोल से करवा का चित्र बनाएं. इसे वर कहते हैं. चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है.

4. आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और कुछ पकवान बनाएं. मिट्टी से माता गौरी और पुत्र गणेश बनाएं. माता गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं.

5. चौक बनाकर आसन को उस पर रखें. गौरी को चुनरी ओढ़ाकर, सुहाग की सामग्री जैसे बिंदी, चूड़ी आदि से गौरी का श्रृंगार करें. जल से भरा हुआ लोटा रखें और कलश की पूजा कर लें.

6. रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं. गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें. पति की दीर्घायु की कामना करें. निम्न मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है-

‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभम्‌।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’

7.करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें.

8.कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें.

9.तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें.

10. रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें. इसके बाद पति से आशीर्वाद लेकर उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें.

जो करवा बनाया जाता है उसमें दीवार पर या कागज पर चंद्रमा तथा उसके नीचे भगवान शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा बनाई जाती है और इसी प्रतिमा की पूजा की जाती है.

नीचे करवा माता पूजन चित्र दिया गया है जिसे बना लेना चाहिए या इसकी तस्वीर रख लेनी चाहिए.

जब कोई स्त्री एक बार इस व्रत को करना प्रारंभ कर देती है, तो उसे यह व्रत जीवन पर्यंत करना पड़ता है. यह जरूरी नहीं है कि हर उम्र मे निर्जला रहकर ही यह व्रत किया जाए. एक बार जब सुहागन महिला इस व्रत का आरंभ कर देती है, तो फिर उसे अपनी सुविधा अनुसार व्रत में फल और जल ग्रहण कर सकती है.

करवा चौथ व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं. हम सभी कथाएं एक-एक कर आपको देंगे ताकि आप व्रत के दौरान बार-बार इन कथाओं को पढ़कर अपना ध्यान पूजा व्रत पर केंद्रित रख सकें. अभी देखें सबसे प्रचलित कथाः-

करवा चौथ की कथा

एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए. द्रौपदी ने सोचा कि अर्जुन तो हैं नहीं और यहां पर हर समय कोई न कोई बड़ी विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं. आखिर अर्जुन के अभाव में रक्षा सुनिश्चित कैसे हो? कोई उपाय तो करना ही होगा.

यह सोचकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया. भगवान प्रकट हुए तो द्रौपदी ने अपनी चिंता बताकर निवारण का मार्ग पूछा. भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को इसका मार्ग बताया.

श्रीकृष्ण ने कहा- हे द्रौपदी एक बार पार्वतीजी ने भी भोलेनाथ से यही प्रश्न किया था कि किसी के दांपत्य जीवन में छोटी-मोटी बाधाएं लगातार आ रही हों तो उन्हें दूर करने का क्या उपाय है.

शिवजी ने पार्वतीजी से कहा कि वैवाहिक जीवन में थोड़े बहुत नोकझोंक स्वाभाविक हैं. उन्हें अपने व्यवहार कौशल से जो दूर कर लेते हैं मैं वैसे गृहस्थों पर विशेष प्रसन्न रहता हूं. करवा चौथ का व्रत इन छोटी-मोटी बाधाओं को पार करने में सहयोगी होता है.

श्रीकृष्ण बोले- हे द्रोपदी जो स्त्री व्यवहार कुशल हो उसे शिवजी का संरक्षण मिलता रहता है. करवा चौथ का व्रत करने से पित्त का प्रकोप भी शांत होता है. तुम्हें मैं इस व्रत के महात्मय की कथा सुनाता हूं.

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एक नगर में एक साहूकार रहता था. उसके सात लड़के और एक लड़की थी. कार्तिक महीने मे जब कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आई. तो साहूकार के परिवार की महिलाओ ने भी करवा चौथ रखा.

जब रात्री के समय साहूकार के बेटे भोजन ग्रहण करने बैठे, तो उन्होने साहूकार की बेटी (अपनी बहन) को भी साथ में भोजन करने के लिए कहा. भाइयों के द्वारा भोजन करने का कहने पर उनकी बहन ने उत्तर दिया कि आज मेरा व्रत है.

मैं चांद के निकलने पर पूजा विधि सम्पन्न करके ही भोजन करूंगी. भाइयों के द्वारा बहन का भूख के कारण मुर्झाया हुआ चेहरा देखा नहीं गया. उन्होंने अपनी बहन को भोजन कराने के लिए प्रयत्न किया.

इसके लिए उन्होंने एक छल किया. दूर छलनी के पीछे दीपक जलाकर रख दिया और बहन तो घर के झरोखे से दिखाकर यह विश्वास दिला दिया कि चांद निकल गया है. मौसम खराब होने के कारण स्पष्ट नहीं दिख रहा पर चंद्रोदय तो हो गया है.

उस अग्नि का प्रकाश अपनी बहन को दिखाते हुए कहा की देखो बहन चाँद निकाल आया है. तुम चाँद को अर्ध्य देकर और अपनी पूजा करके भोजन ग्रहण कर लो. अपने भाइयों द्वारा चाँद निकलने की बात सुनकर बहन ने अपनी भाभियों के पास जाकर कहा.

भाभी चाँद निकल आया है चलो पूजा कर लें परंतु उसकी भाभी अपने पतियों द्वारा की गयी युक्ति को जानती थी.

उन्होंने अपनी ननद को भी इस बारे में बताया और कहा कि आप भी इनकी बात पर विश्वास ना करे परंतु बहन ने भाभियों की बात पर ध्यान ना देते हुए पूजन संपन्न कर भोजन ग्रहण कर लिया. इस प्रकार उसका व्रत टूट गया और गणेशजी उससे नाराज हो गए.

इसके तुरंत बाद उसका पति बीमार हो गया. वह तुरंत अपने घर की ओर भागी.

रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिले. पार्वती माता ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है क्योंकि उसने नकली चांद देखकर अपना व्रत तोड़ दिया था. स्त्री ने तुरंत क्षमा मांगी.

माता पार्वती ने कहा- तुम्हारा पति फिर से जिन्दा हो जायेगा लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत कठोरता से संपन्न करना होगा. तभी तुम्हारा पति फिर से जीवित होगा.

सच्चाई जानने के बाद उसने निश्चय किया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी. अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी.

वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है. उसकी देखभाल करती है. उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है. एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आया.

उसकी सभी भाभियां चौथ का व्रत रखती हैं. जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती.

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आई है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है. यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था.

अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना.

ऐसा कहकर वह चली गई. सबसे अंत में उसकी छोटी भाभी आई. करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करने लगी लेकिन वह भी टालमटोल करने लगी.

इसे देख करवा ने उन्हें जोर से पकड़ लिया और उससे अपने सुहाग को फिर से जीवन देने की विनती करने लगी. भाभी ननद से खुद को छुड़ाने के लिए बहुत प्रयास करती रही. उसने उसे नोचा-खसोटा थप्पड भी लगाए लेकिन उसने नहीं छोड़ा.

अपने पति के लिए ऐसी तपस्या देख आखिरकार उसकी भाभी भी पसीज ही गई और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल दिया.

इतना करना था कि उसका पति भगवान श्रीमहागणेश की कृपा से तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठा.

इस प्रकार श्रीगणेश की कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से उसे अपना सुहाग वापस मिला. उसने श्रीगणेशजी का स्मरण करते हुए उनकी प्रार्थना की- हे भगवान श्रीगणेश! मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपकी कृपा से मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले.

उसके व्रत तथा श्रद्धाभक्ति को देखते हुए भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए. उसके पति को जीवनदान तो दिया ही था साथ ही उसके परिवार को धन-संपत्ति और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान किया.

इस प्रकार जो भी श्रद्धाभक्ति से करवा चौथ व्रत को करता है, वह सारे सांसारिक क्लेशों से मुक्त होकर प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवनयापन करता है.

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