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तप को इतना कठिन कर दिया कि वह सीमाएं पार करने लगा. दो-तीन दिनों में एक बार थोड़ा कुछ आहार लेते फिर लागातार साधना में लीन रहते.
यही उनका नियम बन गया था.
परिणाम यह रहा कि बलिष्ठ शरीर केवल हड्ड़ियों का ढांचा होकर रह गया. शिष्य चिंतित थे. उन्होंने अपनी चिंता बुद्ध को बताया.
श्रोण अच्छे सितारवादक थे. बुद्ध दो सितार लेकर श्रोण के पास आए. एक सितार के तार उन्होंने बहुत ढीले कर दिए थे. दूसरे के तार बहुत कड़े.
बुद्ध ने श्रोण से कहा- आज मुझे सितार सुनने की इच्छा है क्या मुझे सितार बजाकर सुना सकते हो. श्रोण तो सहर्ष तैयार हो गए.
बुद्ध ने उन्हें पहले ढीले तारों वाला सितार दिया और कहा- यह जैसा है वैसे ही तुम इसे बजाकर सुनाओ.
श्रोण ने सितार पकड़ा लेकिन तार ढीले होने से स्वर ही नहीं निकलते थे. श्रोण जैसे सधे हुए सितारवादक से स्वर ही नहीं फूट रहे, यह सोचकर वह शर्मिंदा होने लगे.
श्रोण जितना प्रयास करते संगीत का रस उतना ही बिगड़ने लगता. झुंझलाहट में श्रोण ज्यादा प्रयास करते और माहौल उतना ही असहज हो गया.
बुद्ध उस संगीत पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे. श्रोण की झुंझलाहट जब बहुत ज्यादा हो गई तो बुद्ध ने उन्हें दूसरा सितार बजाने को दिया.
श्रोण ने उसका तार जैसे ही छेड़ा तो वह टूट गया. अब राजकुमार श्रोण लज्जा से गड़े जा रहे थे.
बुद्ध ने कहा- श्रोण तुम्हारे सितारवादन की प्रतिभा की हर तरफ प्रशंसा होती है लेकिन तुम आज अपने गुरू की प्रसन्नताा के लिए नहीं बजा पाए.
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Bhagti saga
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