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संपाति वानरों पर टकटकी लगाए एक दिन उनकी बात सुन रहे थे. अंगद ने कहा- हमसे भाग्यशाली तो जटायु थे जिन्होंने माता सीता को बचाने में लड़ते हुए प्राण त्यागे.

वानरों के मुख से जटायु का नाम सुनकर संपाति उनके पास आए और पूछा कि हे वानर तुम मेरे अनुज जटायु को कैसे जानते हो? उसकी मृत्यु कैसे हुई?

हनुमानजी ने संपाति को सारी बात बताई. संपाति ने बताया कि वह श्रीराम के दूतों की प्रतीक्षा में सैकड़ों वर्षों से बैठे हैं. संपाति ने हनुमानजी को अपनी कथा सुनाई.

संपाति और जटायु भाई थे. वृत्तासुर वध मे देवों का साथ देने के बाद दोनों भाइयों में बड़ा अहंकार आ गया था. दोनों ने एक दिन सूर्य को छूने की शर्त लगाई और उड़े.

सूर्य के करीब पहुंचते ही दोनों जलकर नीचे गिरने लगे. संपाति ने अपने पंख फैलाकर जटायु को छाया कर दी लेकिन सूर्य की गर्मी से संपाति के पंख जल गए.

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