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प्रभु खड़े मुस्कराते रहे. फिर तड़पते हुए केशी का शरीर ही फट गया. उसके प्राण निकल गए. प्रभु के हाथों उसका उद्धार हुआ. दैत्यकुल से निकलकर वह सीधे मोक्ष को प्राप्त हुआ.

भगवान केशी का उद्धार करके पुनः ग्वाल बालों के साथ खेल-कूद में लग गए. केशी के साथ-साथ कंस ने व्योमासुर को भी अपने कार्य में उसकी सहायता के लिए भेजा था.

व्योमासुर असुरों के विश्वकर्मा समझे जाने वाले सबसे बड़े मायावी राक्षस मयासुर का पुत्र था. उसे भी समस्त माया की कलाएं आती थीं. वह श्रीकृष्ण और उनकी टोली के खेल पर नजर रख रहा था.

ग्वाल बाल आपस में चोर और रक्षक बनकर छिपने-छुपाने का खेल खेल रहे थे. वह बालक बनकर शामिल हो गया और खेल में चोर बन जाता था. फिर ग्वाल बालों को चुराकर एक गुफा में बंद कर देता.

गुफा के द्वार पर बड़ी सी चट्टान रखकर उसे बंद कर देता था. इस तरह केवल चार-पांच ग्वाल बाल ही बचे. संख्या कम होती देख प्रभु को चिंता हुई. फिर उन्होंने ध्यान लगाया तो सारा खेल समझ में आ गया.

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