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कजरी तीज की पूजा से पूर्व की तैयारीः
औरतें हाथों में मेहँदी लगा कर नए नए कपड़े-गहने पहनकर तैयार होकर शाम को तीजमाता की पूजा करें और कथा करें.
तीजमाता या कजलीमाता देवी पार्वती का ही एक रूप है.
माता के आगे सत्तू (भुने चने, चावल, या गेहूं के आटे के साथ चीनी मिलाकर बनाये गए पिंड) रखकर उसका भोग लगाएं.
पूजा के समय गोबर की पाल बनाकर एक तलाई बनाई जाती है और उसमें दूध डालते है. बहुएं अपनी सास के पैर छूकर शक्कर और रुपयों का बयना देती है. वे भी बहू को आशीर्वाद देती है.
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हर व्रत की तरह इस व्रत पर भी त्याज्य हैं तीन बातें:
- छल-कपट न करें.
- मिथ्याचार अर्थात झूठ न बोलें.
- दुर्व्यवहार तथा परनिंदा अर्थात किसी के साथ भी बुरा व्यवहार ना करना और किसी की बुराई ना करना.
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पारंपरिक रूप से तीज माता की पूजा इस प्रकार कर सकते हैंः
- पहले कुछ मिटटी या गोबर इक्कट्ठा कर उसका एक पाल बना लें, ध्यान रखें कि उसमें से दूध बाहर न बिखरने पाए.
- उसके एक तरफ नीम की डाली लगा दें और उस पर चुनरी डाल दें.
- गणेश जी की फोटो या प्रतिमा पास में रख दें या गोबर से ही गणेशजी बनाएं.
- पूजा के लोटे पर स्वस्तिक बनाएँ और उस पर मोली बांधें. उस पर थोडा चावल, गुड़ और सत्तू लगाएं. इसी तरह से पूजा के स्थान पर चावल, गुड़, सिक्का, मोली और सत्तू लगाएं.
- पहले गणेश जी और लक्ष्मीजी की पूजा करें.(गणेशजी की संक्षिप्त पूजा है जिससे उनका आह्वान किया जाया है. पांच मिनट से भी कम की पूजा है. आप इसे प्रभु शरणम् एप्प के मंत्र-चालीसा सेक्शन के दैनिक पूजा विधि में देख सकते हैं. एप्प का लिंक ऊपर है उससे डाउनलोड कर लें. लिंक पुनः दे देंगे)
- फिर माता को सत्तू का भोग लगाएं. पाल में थोडा दूध डालें.
- फिर हर सुहागन को कुमकुम, मेहंदी और काजोल की सात बार बिंदी लगानी होती है. कुंवारी लड़कियां सोलह बिंदियाँ लगाती हैं.
- फिर कपूर की आरती कर दें. दीपक जलाए रखें और व्रत कथा कहें.
- व्रत कथा के बाद सब पाल में सत्तू, फल, सिक्का और चुनरी की छाया देखते हैं. इसमें दीपक और गहने भी देखते हैं.
- फिर सभी तीज माता को शीश नवाते हैं.
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