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पृथ्वी के मनोहर सकाम रूप को देख श्रीहरि ने प्रेम निमंत्रण स्वीकार लिया और उनके साथ एक वर्ष बिताया. इस संयोग से पृथ्वी ने एक महातेजस्वी बालक को जन्म दिया. बालक में श्रीहरि सा तेज व शक्ति तथा पृथ्वी समान गंभीरता थी.
चार भुजाओं वाले उस परम तेजस्वी बालक का शरीर तेज के कारण लाल रंग का था. उसका नाम मंगल पड़ा और उसे ग्रहों का सेनापति बनाया गया.
उज्जयिनी में अंधकासुर दैत्य राज करता था. अंधकासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न कर बहुत सारी शक्तियां प्राप्त की थीं. अंधक ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर अमरता का वरदान मांगा.
ब्रह्मा ने असमर्थता जताई तो उसने मांगा- मेरी मृत्यु तभी हो जब मैं अज्ञानतावश अपनी जननी पर आसक्त हो जाउं. इस तरह शिव की कृपा और ब्रह्मा के वरदान के कारण अंधकासुर एक प्रकार से अविजीत हो गया था.
अंधक का पराक्रमी पुत्र था- कनक. एक बार कनक दानव ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा. दोनों में भयंकर युद्ध हुआ. संग्राम में इन्द्र ने कनक को मार गिराया.
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