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उस लकड़ी को खींचते रक्त में सने व्यक्ति जब रुके तब सैनिकों ने लकड़ी के सलीब पर उनके हाथों-पैरों में कीलें ठोंक दीं. उन्हें पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया. वृक्ष स्वयं पर रो रहा था. ऐसे वीभत्स कृत्य में उसका उपयोग हो रहा है यह सोचकर वह दुखी था. वह बार-बार ईश्वर को कोस रहा था.

वह मन में कहता जाता- ईश्वर तो है ही नहीं, ईश्वर तो है नहीं. यदि होता तो ऐसा अत्याचार होता सहन न करता. मुझे इस पाप में भागीदार न बनाता. मैं कहां ईश्वर का अंश बनना चाहता था और कहां रक्त से सना हूं.

ईश्वर तो कहीं है नहीं. उसका कोई अस्तित्व नहीं. यह सब भ्रम है. झूठी बातें, कपोल कल्पनाएं. कुछ नहीं हैं ईश्वर.

उसके सपने टूटे थे इसलिए वह ईश्वर को कोस रहा था. जब हमारे सपने पूरे नहीं होते तो हम इसी तरह ईश्वर को कोसने लगते हैं. खैर, ईश्वर की लीला देखिए. दो दिनों के बाद रविवार को तीसरे वृक्ष को बोध हुआ कि उसने क्या पाया है. पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि उससे बनी सूली पर ईसा मसीह को चढ़ाया गया था.

यह कथा काल्पनिक ही है ऐसा ही मान लेते हैं पर तीन वृक्षों की इस कथा में बहुत बड़ा संदेश है जिसे हम समझ लें तो जीवन के सोचने-देखने का नजरिया बदल जाएगा.

प्रत्येक वृक्ष को वह मिल गया जिसकी उसने ख्वाहिश की थी लेकिन उस रूप में नहीं मिला जैसा वे चाहते थे. हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है या ईश्वर का मार्ग हमारा मार्ग है या नहीं लेकिन उसका मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है.

यदि आप उस ईश्वर पर भरोसा बनाए रखते हुए सत्कर्म करते रहेंगे तो निश्चिंत रहिए- न तो आपका परिश्रम व्यर्थ जाने वाला है, न ही त्याग. बेचैनी साधारण मनुष्य का लक्षण है इसलिए वह बेचैनी में रहता है.  ईश्वर के आगे हाथ जोड़कर जो प्रार्थना की उसे पलक झपकते पूरा करा लेना चाहता है. ईश्वर को भी समय दीजिए. इसे और सरल तरीके से समझाता हूं.

आप अपने बच्चे को बहुत प्यार करते हैं. उसने आपसे आज ही एक नई कार की जिद कर दी. आप तैयार भी हैं समर्थवान भी पर आपको उस कार को घर तक ले आने में दो दिन तो लगेंगे ही न. आप शोरूम जाएंगे. पसंद की कार देखेंगे, रंग का विचार करेंगे औपचारिकताएं पूरी करेंगे तब तो घर ले आएंगे. हो सकता है कि एक दिन में ही हो जाए, हो सकता है चार दिन लग जाएं.

जैसे आपको कई औपचारिकताएं करनी होती हैं- ईश्वर भी समय लेते हैं विचारने के लिए आपके लिए क्या सही क्या गलत? ईश्वर की लीला का आनंद लीजिए. हमारे पूर्वजन्मों के कर्मों का हिसाब भी तो उन्हें ही करना है. पूर्व के कर्मों से मुक्ति नहीं मिलेगी.

जो अच्छा हो रहा है वह ईश्वर की लीला है, उनकी कृपा है. जो बुरा हो रहा है वह हमारे कर्मों का दंड, इसे भोगना होगा. यही सोचकर जीवन को जीना सीख लीजिए. कभी ईश्वर विशेष दयालु होगा तो दंड में कमी कर देगा.

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