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वह दुखी इसलिए था क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे काट दिया गया तो उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा.
दल में से एक लकड़हारा बोला- इस वृक्ष से क्या बनेगा कुछ समझ नहीं आ रहा. किसे बेचा जाए इसका निर्णय भी नहीं कर पा रहे. वैसे मुझे कोई खास चीज बनानी नहीं है इसलिए इसे तो मैं ले लेता हूं. बाद में तय करेंगे कि इसका क्या करना है. बहरहाल इसे आज काट तो लेते ही हैं. कौन बार-बार आए. [irp posts=”6614″ name=”तंत्र मंत्र जादू टोना से आपको बचाते हैं ये उपाय”]
लकड़हारों ने तीसरे वृक्ष को भी काट डाला. ईश्वर की लीला देखिए उसे काटा क्यों इसका भी निर्णय नहीं हो सका. उसका क्या बनेगा इसका भी पता नहीं लेकिन काटा गया.
वृक्ष कटकर आए तो बाजार में बिके भी. ईश्वर की लीला देखिए पहले वृक्ष को एक बढ़ई ने खरीद लिया. उसने उससे पशुओं को चारा खिलानेवाला कठौता बनाया. कठौते को एक पशुगृह में रखकर उसमें भूसा भर दिया गया.
बेचारे वृक्ष ने तो इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह क्या बनना चाहता था और क्या बन गया पर धैर्य रखिए, अभी कहानी खत्म नहीं हुई है. ईश्वर की लीला अभी शेष है.
वहीं दूसरे वृक्ष को काटकर बढ़ई ने उससे मछली पकड़नेवाली छोटी सी नौका बना दी गई. उसे पानी में तैरना था, सफर पर जाना था पर छोटी सी डोंगी नहीं बनना था. मछली मारने के काम न आना था. भव्य जलयान बनकर राजा-महाराजाओं को घुमाने का उस वृक्ष का सपना भी चूर-चूर हो गया.
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तीसरे वृक्ष के लिए तो काटने वाले ने भी कुछ तय नहीं किया था फिर उसके सपने पूरे होने की आशा स्वयं उसे ही न थी तो दूसरों को क्या होगी. उसे लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया गया. टुकड़ों को अंधेरी कोठरी में रखकर लोग भूल गए.
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