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तुमने तो अन्न भी नहीं ग्रहण किया, ऐसा क्यों? जीवित कैसे हो? ऋषियों के इस प्रकार पूछने पर जयंत ने सारी कथा कह दी. पापमुक्त होने के कारण स्वर्ग से उसका विशेष रथ वापस आया और उसपर सवार हो वह स्वर्ग को चला गया.

नारदजी ने शांतनु से कहा- तो राजन आप भी अपने शुद्धिकरण के लिए ब्राह्मणों का जूठन साफ करें, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. इस बात का ध्यान रखें कि अब कभी भगवान नर्सिंह के निर्माल्य का भूले से भी लंघन न हो.

यह प्रसंग सुनाकर सूतजी ऋषि भारद्वाज से बोले- इस तरह नारदजी के बताने से शांतनु ने बारह बरसों तक एकाग्रचित्त होकर ब्राह्मणों का जूठन साफ किया और फिर देवताओं के दिए अपने उत्तम रथ पर सवार होने का सामर्थ्य प्राप्त कर सके.

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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