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सारथी देवसेवित बोला- कुरुक्षेत्र में परशुरामजी का द्वादश वर्षीय यज्ञ चल रह है. आप वहां जाएं और विनम्र भाव से ब्राह्मणों का जूठन साफ करें. इस प्रकार नित्य थोड़ी-थोड़ी शुद्धि होते एक दिन पूर्ण शुद्धि के बाद आप पुनः स्वर्ग आने के योग्य हो जाएंगे.

यह कहकर सारथि देवसेवित यान समेत स्वर्ग को लौट गया. यह कथा सुनाकर नारद जी शांतनु से बोले- राजन जयंत ने समय व्यर्थ नहीं किया. वह कुरुक्षेत्र पहुंचकर सरस्वती नदी के तट पर हो रहे विशाल द्वादश वर्षीय यज्ञ में पहुंचा.

यज्ञ में पधारने वाले ब्राह्मणों का जूठन साफ करने लगा. निरंतर अपने कार्य को निष्ठा पूर्वक और सेवा भाव से करने के कारण यज्ञ में आए ब्राह्मण उसके प्रशंसक बन गए.

बारह बरस बीतने के बाद जब यज्ञ समाप्त हुआ तो ब्राह्मणों ने उससे उसका परिचय पूछा कि तुम कौन हो? बारह बरस तुमने निर्विकार भाव से पूरी लगन और निष्ठा से जूठन साफ किया पर इस बीच एक बार भी हमारा भोजन नहीं किया.

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