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राजा जनश्रुति बड़े उदार हृदय तथा दानी थे. प्रजाहित के जितने भी कार्य संभव हों या उन्होंने करा रखे थे. कहते हैं राजा ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि बिना श्रम किए भी कोई अच्छा जीवन बिता सकता था.
प्रजाहित में किए जनश्रुति के कार्यों की सर्वत्र प्रशंसा होती थी. इससे राजा को यह अभिमान भी हो गया कि वह सर्वोत्कृष्ट राजा है. देवराज इंद्र से भी ज्यादा योग्य.
एक दिन कुछ हंस दूर से उड़ते हुए आए और रात व्यतीत करने के लिए राजा के महल की छत पर बैठ गए. हंस आपस में वार्तालाप करने लगे. जनश्रुति पक्षियों की भाषा समझता था. वह हंसों की बात सुनने लगा.
एक हंस व्यंग्य से बोला, जनश्रुति ने इतने पुण्य कार्य किए हैं कि उसका तेज़ चारों ओर बिजली के समान फैल गया है. कहीं उससे छू मत जाना नहीं तो तुम सब भस्म हो जाओगे.
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