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नारदजी ने कहा कि वह उसकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं. बेटी के लिए नारद से बेहतर वर कहां मिल सकता था! वह नारदजी से बेटी के विवाह को राजी हो गया.
नारदजी का विवाह हो गया. ब्राह्मण ने नारदजी को खेती-बाड़ी के लिए थोड़ी जमीन दे दी. नारद को परिवार चलाना था, इसलिए वह खेती-बाड़ी में जुट गए.
जिस वीणा को बजाते नारद संसार में नारायण नाम लेते फिरते थे, वह खूंटी पर टंग गई. दिनभर खेतों में मेहनत करते शाम को थके घर आते. नारायण नाम की सुध कहां रही!
नारदजी गृहस्थी कार्य में मेहनती निकले. खूब अऩ्न उगाया और समृद्ध हो गए. इधर परिवार भी बढ़ गया. कई संतानें भी हो गईं. संतानों के पालन-पोषण में नारद फंसे रहे.
एक बार गांव में भीषण बारिश हुई. गांव के पास की नदी में उफान आया. घर, खेत, मवेशी सभी बह गए. नारद अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर जान बचाने भागे.
घर में रखा जो कुछ भी धन बटोर सकते थे, उसे गठरी में बांधा और पत्नी तथा बच्चों के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में निकल पड़े.
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