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उन चारो युवकों ने धर्मवत्स की बांह और पैर पकड़ लिया और आकाशमार्ग से ले उड़े. भयभीत धर्मवत्स चिल्ला भी नहीं पाया. वे उसे वन के बहुत ऊपर आकाश में ले गए. पूछने पर उन युवकों ने कोई उत्तर नहीं दिया कि वे उसे कहां ले जा रहे हैं.
धर्मवत्स कई वन, नदियों, नगरों और बड़े ग्रामों के ऊपर से उड़ता रहा. वे जब एक बहुत घने जंगल के ऊपर से उड़ रहे थे तभी उन्हीं के बीच एक सुंदर नगर दिखायी दिया और उन्होंने धर्मवत्स को उसी नगर के एक उपवन में जा उतारा.
नगर बड़ा सुंदर था. संगीत की ध्वनि गुंज रही थी. कुछ सामान्य से दिखने वाले लोग दिखे, कुछ मैले कुचैले वस्त्र पहने लोग. इसके विपरीत कुछ लोगों के वस्त्र और आभूषण तो ऐसे थे जैसे वे देवता हों और स्वर्ग से सीधा यहीं आये हों.
धर्मवत्स को एक बार लगा कि वह या तो सपना देख रहा है अथवा मर चुका है. चारों युवक धर्मवत्स को यहां के राजा के सम्मुख ले गए जो सोने के वैभवशाली सिंहासन पर विराजमान था.
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