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वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ 11 ॥
(हे देवी! आपसे दूर होकर एक सम्राट बनकर जीने से अच्छा है आपके जल में मछली या कछुआ बनकर रहना अथवा आपके तीर पर निर्धन चंडाल बनकर रहना।)
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।गंगा स्तवमिमममलं नित्यं पठति नरे यः स जयति सत्यम् ॥ 12 ॥
(हे ब्रह्मांड की स्वामिनी! आप हमें विशुद्ध करें। जो भी यह गंगा स्तोत्र प्रतिदिन गाता है, वह निश्चित ही सफल होता है।)
येषां हृदये गंभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।मधुराकंता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥ 13॥
(जिनके हृदय में गंगा जी की भक्ति है। उन्हें सुख और मुक्ति निश्चित ही प्राप्त होते हैं। यह मधुर लययुक्त गंगा स्तुति आनंद का स्रोत है।)
गंगा स्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ 14॥
(भगवत चरण आदि जगद्गुरु द्वारा रचित यह स्तोत्र हमें विशुद्ध कर हमें वांछित फल प्रदान करे।)
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प्रभु शरणम्