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गणेश चतुर्थी पर गणपति पूजा में की जाने अंग पूजन वाली भूल, आप न करेंः
गणेशजी की पूजा में एक विशेष विधान है भगवान के अंगों की पूजा. अक्सर लोग यही भूल करते हैं, वे गणपति के अंगों की पूजा नहीं करते जो गलत है. प्रथमपूज्य श्रीगणेश के विभिन्न अंगों के पूजन का महात्मय है. शीश के स्थान पर हाथी का मस्तक, एक दांत का टूटने से लेकर, लंबोदर और मूषक वाहन होने के पीछे संसार के कल्याण की गाथा है. अतः गणेश पूजा में उनके अंगों का स्मरण आवश्यक है. आइए जानते हैं उनके अंगों की पूजा का विशेष मंत्र.
गणेश चतुर्थी पर श्री गणेश जी के अंगों की विधिवत पूजाः
गणेश चतुर्थी पर गणपति के अंगों की पूजा इस प्रकार करें. हर मंत्र के साथ उनके उस अंग को धूप,दीप, आरती दिखाएं.
- ऊं गणेश्वराय नमः पादौ पूज्यामि। (पैर पूजन)
- ऊं विघ्नराजाय नमः जानूनि पूज्यामि। (घुटने पूजन)
- ऊं आखूवाहनाय नमः ऊरू पूज्यामि। (जंघा पूजन)
- ऊं हेराम्बाय नमः कटि पूज्यामि। (कमर पूजन)
- ऊं कामरीसूनवे नमः नाभिं पूज्यामि। (नाभि पूजन)
- ऊं लंबोदराय नमः उदरं पूज्यामि। (पेट पूजन)
- ऊं गौरीसुताय नमः स्तनौ पूज्यामि। (स्तन पूजन)
- ऊं गणनाथाय नमः हृदयं पूज्यामि। (हृदय पूजन)
- ऊं स्थूलकंठाय नमः कठं पूज्यामि। (कंठ पूजन)
- ऊं पाशहस्ताय नमः स्कन्धौ पूज्यामि। (कंधा पूजन)
- ऊं गजवक्त्राय नमः हस्तान् पूज्यामि। (हाथ पूजन)
- ऊं स्कंदाग्रजाय नमः वक्त्रं पूज्यामि। (गर्दन पूजन)
- ऊं विघ्नराजाय नमः ललाटं पूज्यामि। (ललाट पूजन)
- ऊं सर्वेश्वराय नमः शिरः पूज्यामि। (शीश पूजन)
- ऊं गणाधिपत्यै नमः सर्वांगे पूज्यामि। (सभी अंगों को धूप-दीप दिखा लें)
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गणेश पूजा में आवश्यक बातें जो ध्यान रखें-
आसन समर्पण करते समय आसन पर पांच फूल रखें.
पाद्य में- चार बार जल, दूब, कमल अर्पित करें
अर्घ्य में- चार बार जल, जायफल, लौंग आदि
मधुपर्क में- कांस्य पात्र में घी, मधु और दही दें.
मधुपर्क के आचमन में सिर्फ एक बार जल दें.
स्नान में- पचास बार जल छिड़कें
वस्त्र- बारह अंगुल से बड़ा और नया वस्त्र होना चाहिए
धूप- गूगल का हो और कांसे के पात्र में हो तो अच्छा
नैवेद्य- एक व्यक्ति के भोजन के लिए पर्याप्त होना चाहिए
दीप- कपास की बाती कम से कम चार अंगुल की. घी के दीपक से भगवान की सात बार आरती की जाती है.
दूर्बा व अक्षत- मोटे अंदाजे से संख्या सौ के ऊपर ही रखें.
जो सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती उसके लिए भगवान गणपति का ध्यान करके उनसे क्षमा प्रार्थना कर लें और विनती करें कि हे गजानन, गौरीसुत गणेशजी आप हमें सामर्थ्य दें कि अगले वर्ष आपकी पूजा में समस्त सामग्री से पूर्ण होकर आपकी पूजा करें.
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इसके बाद चतुर्थी की कथा कहें. कथा के बाद प्रभु की विधिवत आरती करें और प्रसाद वितरण करें. चतुर्थी की कथा अगले पेज पर देखें.
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बहुत सुंदर कथायें धन्य वाद