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इस उपहास के उत्तर में बटुक बने श्रीभगवान जोर से हंसे और फिर बोले- इतने से घबरा गए देवेंद्र? इसका अर्थ है आप अभी पूरे ब्रह्मांड से परिचित ही नहीं हैं.
न जाने कितने ब्रह्मांड हैं और उसमें न जाने कितनी तरह की सृष्टि. उस सृष्टि में न जाने कितने ब्रह्मा, विष्णु महेश.
इंद्र के कुछ समझने से पूर्व बटुक ने कहा- देवराज आप धरती के धूलकण गिन सकते हैं पर इंद्र और विश्वकर्मा की गिनती नहीं हो सकती. जैसे नदी में नौकाएं तैरती हैं वैसे ही महाविष्णु के रोमकूप के बीच जो पानी है उसमें तमाम ब्रह्मांड तैरते हैं.
बटुक रूपी भगवान का यह प्रवचन चल ही रह था कि तभी वहां कतार लगाए हुए चींटे गुजरे. बटुक और इंद्र ने भी उसे देखा.
चींटों को देखकर बटुक हंसने लगे. इंद्र ने कहा- अब क्या हुआ, चींटों को देखकर क्यों हंस रहे हो ब्राह्मण कुमार?
बटुक ने कहा- आप जिन चींटों को देख रहे हैं कभी ये भी इंद्र हुआ करते थे परंतु आज कर्मों के हिसाब से इन्हें यह योनि भुगतनी पड़ रही है.
कर्मों का भी खेल निराला है. ये भगवान को इंसान और इंसान को श्वान बना दें.
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