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सीता ने कहा- तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया है. उनके बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई है. जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो.
शुकी ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है. पेडों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं. मैं गर्भवती हूं. मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है.
सीताजी नहीं मानी. शुक ने कहा- आप जिद न करें. जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाउंगा. अभी तो हमें जाने दें.
सीता ने कहा- ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी. मैं इसे कष्ट न होने दूंगी. शुक को पत्नी से बड़ा प्रेम था. वह अकेला जाने को तैयार न था.
जब शुक को लगा कि वह सीता के चंगुल से मुक्त नहीं हो सकता तो विलाप करने लगा- मुनियों ने सत्य कहा है, मौन रहना चाहिए. अगर हम कथा न कहते तो मुक्त होते.
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