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पार्वतीजी तैयार हो गईं. उन्होंने कहा- मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो.

मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो. हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं. उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा.

पार्वतीजी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है. मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं. तुम इसका जीवन दे दो.

मगरमच्छ ने पार्वतीजी से तपदान करने का संकल्प करवाया. तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा.

मगर बोला- हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं. तुमने जीवनभर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी. चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं.

पार्वतीजी ने कहा- हे ग्राह! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लडके को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता?

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