भगवान श्रीकृष्ण नारायण के पूर्णावतार हैं. मानवदेह धरकर उन्होंने मनुष्यों के सभी सुख-दुख का स्वयं अनुभव किया. मनुष्य की पीड़ा को समझते हैं श्रीकृष्ण. इसलिए समस्त बाधाओं को मिटाने में अचूक हैं श्रीकृष्ण मंत्र.
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कहते हैं न जिसने कष्ट देखे हों वही उसकी पीड़ा समझ सकता है, वही उनका निदान कह सकता है. मानवरूप में श्रीकृष्ण का जीवनकाल बाधाओं से भरा रहा हैं. भगवान भूलोक पर आए ही थे मृत्युलोक के प्राणियों के कष्टों की थाह लेने. स्वयं उसकी पीड़ा समझने. इसलिए कहा जाता है कि मनुष्य की सारे कष्टों के निवारण में बड़े कारगर सिद्ध होते हैं श्रीकृष्ण मंत्र.
श्रीकृष्ण मंत्र अथाह हैं. उनमें से चुनकर 12 विशिष्ट सिद्धिदायक श्रीकृष्ण मंत्र हम आपके लिए लेकर आए हैं. पहले हम विशिष्ट मनोकामनाओं वाले मंत्रों की बात करेंगे फिर अक्षर मंत्रों की.
विशिष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जपे गए बहुत से मंत्रों को सिद्ध करना पड़ता है जबकि अक्षर मंत्र स्वयंसिद्ध होते हैं. बिना सिद्ध किए भी जप किया तो लाभ मिलता है. मंत्र सिद्ध कर लेने के बाद लाभ अधिक होता है. अक्षर मंत्रों को सिद्ध करना सरल होता है. अक्षर मंत्र हो या अन्य कोई भी मंत्र यदि सकाम जप यानी किसी मनोकामना के साथ जप कर रहे हैं तो विधि-विधान का पूरा ख्याल करना होगा. निष्काम जप के लिए विधि-विधान की ज्यादा बंदिश नहीं होती.
इस पोस्ट में आप जानेंगेः
- अक्षर रूप वाले स्वयंसिद्ध श्रीकृष्ण मंत्र
- स्तोत्र या श्लोक रूप वाले श्रीकृष्ण मंत्र
- धनदायक, रोग, बाधानाशक श्रीकृष्ण मंत्र
- वाक् सिद्धि, स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण मंत्र
- विशिष्ट मनोकामना पूर्ति के लिए प्रभावशाली श्रीकृष्ण मंत्र
- अचानक आए संकट नाश, स्वप्न सिद्धि, पुराने रोग-व्याधि नाशक श्रीकृष्ण मंत्र
- सर्वमनोकामना पूर्ति के लिए श्रीकृष्ण मंत्र
- श्रीकृष्ण मंत्र सिद्ध करने की विधि
पोस्ट आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है. ये मंत्र और इनके अतिरिक्त सभी देवताओं के सैकड़ों विशेष मंत्रों का सुंदर संग्रह आपको प्रभु शरणम् में मिल जाएगा. आप अपनी जरूरत के हिसाब से अपने आराध्य के मंत्रों का जप कर सकते हैं. प्रभु शरणम ऐप्प में हम मंत्रों को जपने आदि की विधि, मंत्रों के विषय में चर्चा की शृंखला भी चलाते रहते हैं. आप प्रभु शरणम् ऐप्प एक बार अवश्य देखें.
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शुरुआत विभिन्न प्रयोजन वाले मंत्रों से करते हैं. इनके बाद 12 अत्यंत प्रभावशाली श्रीकृष्ण के अक्षर मंत्रों की चर्चा होगी.
विभिन्न प्रयोजनों, मनोकामनाओं की सिद्धि दिलाने वाले श्रीकृष्ण मंत्र
।।विपत्तिनाशक श्रीकृष्ण मंत्र।।
मंत्रः
हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन.
प्रयोजनः आकस्मिक विपत्तियों का नाश करना.
विधिः
इस मन्त्र का कम से कम 108 बार स्वयं जप करें. यदि आपने पूरी निष्ठा और श्रद्धा से इस मंत्र का जप किया है तो कुछ समय के पश्चात हो सकता है कि भगवान श्रीकृष्ण स्वप्न में कुछ आदेश करें.
मंत्र को सिद्ध करने के लिए कम से कम 51,000 जप व दशांश 5,100 जप अथवा आहुतियां आवश्यक हैं. यदि सवा लाख जप और उसका दशांश हवन करते हैं तो अतिउत्तम. जप-अनुष्ठान के विधि-विधान में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए. इसलिए आवश्यक है कि किसी वैदिक ज्ञाता या योग्य गुरू के मार्गदर्शन में ही करें.
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।।दीर्घ संकटों के नाश के लिए।।
हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन ॥1।।
हा कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।
कौरवैः परिभूतां मां किं न त्रायसि केशवः ॥२॥
प्रयोजनः दीर्घसंकट यानी लंबे समय से चली आ रही परेशानियों के नाश के लिए. कई परेशानियां जो बार-बार खडी होकर बाधा करती हैं उनके नाश के लिए इसका जप करना चाहिए.
विधिः
दो मंत्रों का संयुक्त मंत्र है. इसे पुष्ट करने के लिए दो मंत्र कहे गए हैं. दोनों मन्त्रों का 32,000 जप करने से, अत्यंत दीर्घ संकट नष्ट हो जाते हैं.
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।।स्वप्न द्वारा कार्यसिद्धि ।।
ॐ कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥
प्रयोजनः स्वप्न में कार्य सिद्धि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए.
विधिः
यह मंत्र श्रीमदभगवतगीता के सांख्ययोग में आया है. अर्जुन भगवान के समक्ष दीन-हीन होकर प्रार्थना करते हैं कि मुझे अब कुछ नहीं सूझ रहा. मेरे ज्ञानचक्षु बंद हैं. हे श्रीकृष्ण आप इन्हें जाग्रत करिए. मेरे अंतःकरण को प्रेरणा देकर मुझे सही मार्ग दिखाइए.
अर्जुन याचकभाव में भगवान से कहते हैं-
कृपण और दुर्बल स्वभाव के कारण अपने कर्तव्य के विषय में मोहित हुआ, मैं आपसे वह साधन जानना चाहता हूं जो मेरे लिये श्रेयस्कर हो. उसे कहिए, अब मैं आपका शिष्य आपका शरणागत हूँ, कृपया मुझे उपदेश दीजिये।
कहा जाता है कि इस मंत्र को सिद्ध कर लेने के बाद आप कोई भी काम करने जा रहे हैं तो वह सफल होगा या नहीं, उसके विषय में उचित मार्गदर्शन भगवान की प्रेरणा से स्वप्न में आने लगते हैं. किसी भी कार्य की सिद्धि के विषय में स्वप्न में प्रेरणा मिलने लगती है. मंत्र थोड़ा कलिष्ट है. विशेष कार्य मंत्र हैं इसलिए इन मंत्रों में दोष की अनुमति नहीं है. इसलिए प्रयास के बाद किसी विद्वानजन के मार्गदर्शन में ही अनुष्ठान करना चाहिए.
प्रतिदिन विधिवत भगवान श्री कृष्ण अथवा भगवान विष्णु जी का पूजन करके, उपर्युक्त मन्त्र का 12 दिनों में 25,000 जप करने से, स्वप्न के द्वारा कार्यसिद्धि का ज्ञान होना शुरू हो जाता है.
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।।रोग-व्याधि के नाश के लिए।।
ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठ मेधसे।
सर्व व्याधि विनाशाय प्रभो मामृतं कृधि।।
प्रयोजनः बार-बार यदि बीमार होते हैं तो इस मंत्र का जप करना चाहिए. राहत देता है यह कृष्णमंत्र
विधिः
इस मन्त्र का प्रतिदिन प्रातःकाल उठते ही बिना किसी से कुछ बोले, 3 बार जप करने से सर्व अनिष्ट का नाश होता है. इसका अनुष्ठान 51,000 मन्त्र जप तथा 5,100 दशांश हवन से सम्पन्न हो जाता है.
।।पुराने रोग से राहत के लिए।।
ॐ रां श्रीं ऐं नमो भगवते वासुदेवाय ममानिष्टं नाशय नाशय।
मां सर्वसुखभाजनं सम्पादय सम्पादय हूं हूं श्रीं ऐं फट् स्वाहा।।
प्रयोजनः कोई पुरानी बीमारी बार-बार उभरकर परेशान करती है, जल्दी शरीर को छोड़ नहीं रही तो यह श्रीकृष्ण मंत्र लाभ देता है.
विधिः
इस मन्त्र का प्रतिदिन 108 बार जप करना चाहिए.
।।अचानक आए संकट के निदान के लिए।।
“कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
प्रयोजनः अाकस्मिक संकटों के नाश के लिए, धन-धान्य की प्राप्ति के लिए.
विधिः
द्रौपदी जब भी संकट में आती थीं तो सबसे पहले श्रीकृष्ण को पुकारती थीं और वह उनके कष्टों का नाश करते थे. चीरहरण के समय का संकट हो या दुर्वासा ऋषि के 60 हजार शिष्यों संग वन में उनके अतिथि बन जाने पर भोजन कराने का संकट, द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से गुहार लगाई और उनके संकट दूर हुए.
संकटासन्न द्रोपदी की अवस्था का ध्यान करें तथा सात बार उक्त मन्त्र का जप करें. बार-बार संकट आते रहते हैं तो प्रतिदिन 108 बार जप करना चाहिए और संकट से सामना के लिए जूझना चाहिए. अदृश्य रूप से भगवान आपकी सहायता किसी न किसी के माध्यमसे कराते रहेंगे.
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।।सर्व मनोकामना की पूर्ति हेतु।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते राधाप्रियाय राधा-रमणाय।
गोपीजनवल्लभाय ममाभीष्टं पूरय पूरय हुं फट् स्वाहा।।
प्रयोजनः किसी भी तरह की मनोकामना की पूर्ति के लिए
विधिः
राधा जी, श्रीकृष्ण की अधिष्ठात्री देवी कही गई हैं. ऐसा माना जाता है कि राधाजी के बिना श्रीकृष्ण की आराधना पूरी नहीं होती. कई पुराणों में आया है कि राधाजी लक्ष्मी जी का अवतार थीं. जैसे विष्णुजी की पूजा लक्ष्मीजी के बिना अधूरी रहती है उसी प्रकार श्रीकृष्णजी की पूजा राधाजी के बिना अधूरी है. राधाजी के साथ भगवान का स्मरण करने पर भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं.
इस मन्त्र को कदम्ब की लकड़ी की छोटी पीठिका (चौकी) पर अष्टगन्ध अथवा कपूर व केशर से, अनार की कलम से लिखकर षोडशोपचार से पूजन करें.
सवा लाख मंत्रजप का विधान है. प्रतिदिन 1800 से कम जप नहीं होना चाहिए. बढते हुए क्रम में करते हुए सवा लाख की संख्या तक पहुंचना चाहिए. उसके बाद दशांश यानी 12,500 दशांश होम हेतु जप करना चाहिए.
अब जानिए श्रीकृष्ण के बारह प्रभावशाली अक्षर मंत्र जो करते हैं मनोकामनाएं पूरी-
श्रीकृष्ण का मूलमंत्र
“कृं कृष्णाय नमः”
इस श्रीकृष्ण के मूलमंत्र की एक माला का जप प्रातःकाल नित्यक्रिया व स्नानादि के पश्चात प्रतिदिन करने से समस्त बाधाओं एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है. भगवान के समक्ष मंदिर में यदि बैठकर जप का समय मिले तो इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए. इससे तत्काल ध्यान लग जाता है.
जिनका दिमाग बहुत चंचल रहता है, तरह-तरह के सोच आते हैं उन्हें एकाग्रता की जरूरत होती है. यदि इस मंत्र के जप का नियम बना लें तो आप सरलता से ध्यान की मुद्रा में चले जाएंगे. मानसिक तनाव दूर होगा. दिमाग की नसों को बहुत रिलैक्स अनुभव होगा. मन की शांति ही सब सुखों का द्वार है. इसलिए श्रीकृष्ण का यह मंत्र बहुत कारगर है.
कई कुंडलिनी जागरण कराने वाले योगी और महात्मा इसी मंत्र का प्रयोग करते हैं. वे यही मंत्र जप को देते हैं.
ज्योतिषशास्त्र में माना गया है कि इसके जप से घर-परिवार में सुख-शांति आती है. मन जब शांत होगा तो सुख-शांति आना स्वभाविक ही है. कोई पुराना अटका हुआ धन प्राप्त होता है.
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सप्ताक्षर श्रीकृष्ण मंत्र-
“गोवल्लभाय स्वाहा”
इस सात अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जप सिद्धियों की प्राप्ति के लिए बताया गया है. इस मंत्र का नियमित तौर पर लगातार जप करने से अंततः साधक संपूर्ण सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है.
मंत्र के जप के लिए शांत मन से बैठें. आसन लगाएं, ध्यान की मुद्रा में आकर पीठ को सीधा रखते हुए किंतु शरीर में तनाव न हो. आराम से बैठकर इसकी साधना करें.
इस मंत्र को सवा लाख जप से मंत्र सिद्ध हो जाता है. इस मंत्र को धनप्रदायक माना गया है. मुंह अंधेरे सुबह-सुबह इसका यथासंभव जप करने से शरीर की नसें मजबूत होती हैं. रक्तसंचार उत्तम रहता है और कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है.
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अष्टाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र-
गोकुलनाथाय नमः
अष्टाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र को समस्त भौतिक सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है. धन-धान्य, आरोग्य और समस्य मनोकमानाएं पूरी करने वाला बताया गया है. इस आठ अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जप जो भी साधक करता है,उसकी समस्त मनोकामनाएं व अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं.
सप्ताक्षर मंत्र और अष्टाक्षर मंत्र में एक ही अक्षर का अंतर है. दोनों ही मंत्र प्रभावशाली हैं. आपके गुरू जिस मंत्र को जपने का आदेश करें वही मंत्र आप जपें.
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दशाक्षर श्रीकृष्ण मंत्र-
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः
इस दस अक्षर वाले श्रीकृष्ण मन्त्र जप से वाक् सिद्धि प्राप्त होती है. प्रभावशाली और ओजस्वी वक्ता बनकर सब पर अपनी छाप छोड़ सकते हैं. इसके जप से भी साधक वाक सिद्धि के साथ-साथ संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति सहज कर लेता है.
द्वादश अक्षर श्रीकृष्ण मंत्र-
ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय
इस बारह अक्षर वाले श्रीकृष्ण मन्त्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सर्वस्व प्राप्त होता है.
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सप्तदशाक्षर श्रीकृष्ण मन्त्र
ॐ श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
श्रीकृष्ण के सप्तदशाक्षर यानी सत्रह अक्षरों वाले महामंत्र के पांच लाख बार जप की महत्ता कही गई है. पूर्ण जप करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है. जप के समय हवन दशांश का, अभिषेक दशांश का, तर्पण तथा तर्पण का दशांश, मार्जन करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है. इसे किसी वैदिक और ज्ञानी पुरोहित से समझने के बाद ही जप का अनुष्ठान करें.
जिस व्यक्ति को यह मंत्र सिद्ध हो जाता है वह सर्वसिद्ध हो जाता है.
बाईस अक्षरीय श्रीकृष्ण मन्त्र-
“ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा”
इस 22 अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का, जो भी साधक जाप करता है, उसे वागीशत्व की प्राप्ति होती है. वागीशत्व वह स्थिति है जिसमें आपकी वाणी की सिद्धि हो जाती है. आप किसी के लिए जो भी शुभवचन कहें उसके पूर्ण होने की संभावना रहती है. कम से कम सवा लाख जप से सिद्धि होती है.
कहते हैं सवा करोड़ जप और दशांश के हवन के बाद साधक पूर्णरूपेण वाणीसिद्ध हो जाता है पर इसका जप सरल नहीं. शुद्ध उच्चारण न हो तो जप नहीं करना चाहिए. पहले किसी वेदज्ञ की देखरेख में वाचिक जप करके प्रैक्टिस कर लेना चाहिए उसके बाद मानसिक जप होना चाहिए. जप के दौरान तपस्वी सा जीवन व्यतीत करना होता है.
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तेईस अक्षरीय श्रीकृष्ण मंत्र-
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्रीं
इस 23 अक्षरों वाले श्री कृष्णमंत्र का जप बाधाओं से मुक्ति के लिए बताया गया है. कई लोगों को अक्सर परेशानियों का सामना करना पड़ता है-खासतौर से आर्थिक संकट का. यह मंत्र उनके लिए बहुत लाभदायक रहता है. मंत्र को ध्यान से जपें. प्रतिदिन सुबह एक माला के जप से आरंभ करें और यथासंभव जप पर ले जाएं. दैनिक जीवन में अचानक आ धमकने वाली छोटी-बड़ी परेशानियों से राहत मिलेगी.
अट्ठाईस अक्षरीय श्रीकृष्ण मंत्र-
ॐ नमो भगवते नन्दपुत्राय आनन्दवपुषे गोपीजनवल्लभाय स्वाहा
इस अठ्ठाइस अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसको समस्त अभीष्ट वस्तुएं प्राप्त होती हैं. यह मंत्र अठ्ठाइस अक्षरों वाला होने के कारण थोड़ा कठिन है. इसका जप साधकजन ही करते हैं.
गृहस्थों को अभ्यास के बाद इस मंत्र का जप प्रतिदिन कम से कम एक माला से शुरू करना चाहिए. जब अभ्यास बन जाए तो विधि-विधान से संकल्प लेकर सवा लाख जप का अनुष्ठान करें. समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
इस मंत्र का जप के साथ चिंतन भी किया जाए तो भगवान श्रीकृष्ण के हृदय में दर्शन होने लगते हैं. सवा लाख जप से यह मंत्र सिद्ध होता है. संन्यासीगण इसे सिद्ध करते हैं.
उनतीस अक्षरीय श्रीकृष्ण मंत्र-
लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा
लक्ष्मीदायक मंत्र है यह. इस उनतीस अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का एक लाख जप करने के बाद घृत, शर्करा व मधु में तिल व अक्षत मिश्रित कर होम करना चाहिए. इससे स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति बताई गई है.
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बत्तीस अक्षरीय श्रीकृष्ण मंत्र-
गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहानन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय
इस बतीस अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख जप करता है तथा दुग्ध व शर्करा से निर्मित खीर द्वारा दशांश हवन करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
तैंतीस अक्षरीय श्रीकृष्ण मंत्र-
ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥
इस तैंतीस अक्षरों वाले श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे समस्त प्रकार की विद्याएं निःसंदेह प्राप्त होती हैं. यह मंत्र थोड़ा कठिन है. विधि-विधान से इसके सवा करोड़ जप से श्रीकृष्ण के सायुज्य की प्राप्ति तक हो सकती है.
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