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यह सुनते ही सारा राज्य शोक में डूब गया. अतिथि के रूप में वहां उपस्थित राजा हंस को भी बहुत शोक हुआ. उसने हेमराज को सांत्वना देते हुए कहा- आप चिंता न करें. मैं राजकुमार के प्राणों की रक्षा करूंगा.
अपने वचन का निर्वाह करने के लिए राजा हंस ने यमुना तट पर एक ऐसे किले का निर्माण कराया जिसमें बिना अनुमति हवा एक पतंगे का भी प्रवेश न हो सके.
उसी किले में सुरक्षा के बीच राजकुमार तरूण हुआ. राजकुमार ने कभी कोई स्त्री नहीं देखी थी परंतु देवयोग से उसे एक दिन एक राजकुमारी दिख गई. दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने आपस में गंधर्व विवाह कर लिया.
दोनों साक्षात कामदेव औऱ रतिदेवी के युगल के समान प्रतीत होते थे. राजा हंस को पता चला तो उसे ज्योतिषी की भविष्यवाणी याद आई. हंस और राजा हेमराज दोनों ने ही विधि के विधान को बदलने का निश्चय किया.
विवाह के चौथे दिन मुझे उसके प्राण हरण के लिए जाना था. मैं अपना कर्तव्य पूरा करने पहुंचा. उन लोगों ने भांति-भांति के यत्न किए ताकि मेरा प्रवेश न हो सके और चौथा दिन बीत जाए पर आपके प्रताप से आपके दूतों का प्रवेश कहीं कोई रोक ही नहीं सकता.
मैंने उसके प्राण हर लिए. जहां कुछ पल पूर्व तक उत्सव का वातावरण था वहां चीख-पुकार मच गई. नवविवाहिता राजकुमारी तो ऐसा दारूण विलाप कर रही थी कि मेरा कठोर मन भी उसे सुनकर विचलित हो गया.
हे महाराज मैं स्वयं भी रोने लगा परंतु कर्तव्य की डोर से बंधा होने के कारण मैं विवश होकर वहां से उसके प्राण लेकर चला आया.
इतनी कथा सुनाकर यमदूत चुप हो गया. वहां एकदम से शांति हो गई. स्वयं यमराज भी इसे सुनकर भावुक हो गए.
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