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धनतेरस पूजा की कथा-

एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा- तुम लोग अनंत काल से प्राणियों के शरीर से प्राण का हरण कर निष्प्राण करने का दुखदायी कार्य कर रहे हो. प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय, समय क्या तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या? यदि कभी ऐसा हुआ है तो मुझसे कहो, आज में तुम्हारी पीड़ा सुनने को उत्सुक हूं.

दूत यम देवता के भय से पहले तो यही कहते रहे कि हे स्वामी हम तो अपना कर्तव्य निभाते है, आपकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु यमदेवता समझ गए कि दूत ये बातें किसी दंड के भय से या कर्तव्यविमुख घोषित कर दिए जाने के भय से कह रहे हैं.

उन्होंने यमदूतों के साथ मृदु बातें कीं और उनके मन का भय दूर कर दिया फिर उन्होंने अपना वही प्रश्न किया.

इस बार एक दूत ने एक बताया- हे महाराज एक बार राजा हेम के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया था. इच्छा हो रही थी कि उसके प्राण न लें क्योंकि वह तो अल्पायु था.

मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में उसके प्राण शरीर से बाहर आ रह थे लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके.

यमराज ने कहा- मुझे विस्तार से सारा प्रसंग सुनाओ.

यमराज का आदेश पाकर दूत ने प्रसंग बताना शुरू किया- हे प्रभो! हंस नामक एक प्रतापी राजा शिकार के लिए वन में निकला और भटकता हुआ दूसरे राजा हेमराज के राज्य में पहुंच गया.भूख-प्यास से व्याकुल राजा हंस का हेमराज ने बड़ा स्वागत किया.

उसी दिन हेमराज को पुत्र की प्राप्ति हुई थी. कई वर्ष की प्रतीक्षा के बाद उसके यहां पुत्ररूप में संतान की प्राप्ति हुई सो बहुत बड़ा उत्सव हुआ. परंपरा के अनुसार ज्योतिषी को बुलाया गया.

हेमराज के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की- हे राजन! इसका विवाह मत करना क्योंकि विवाह के चौथे ही दिन सर्प के काटने से इसकी अकाल मृत्यु हो जाएगी.

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