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उसने सेठ को कहा कि सत्संग में जाओ वहां मानसिक शांति मिलेगी. सेठ को यह विचार पसंद आया. यह सोचकर राजी था कि संत अवश्य ऐसी विद्या जानते होंगे जिससे मेरा दुख दूर हो जाए.
सेठ सीधा संत समागम में पहुंचा. वह एकांत में संतजी से मिला और बोला- मेरे दुख की तो कोई सीमा नहीं है. मेरी आठवी पीढ़ी भूखों मर जाएगी क्योंकि मेरे पास जो संपत्ति है वह मात्र सात पीढ़ी के लिए पर्याप्त है.
आप कृपया कोई उपाय ऐसा बताएं जिससे कि मेरे पास और सम्पत्ति आए ताकि सात के बाद की पीढ़ियां भूखी न मरे. आप जो भी अनुष्ठान आदि बताएं मैं करने को तैयार हूं.
संत ने धैर्य से बात सुनी फिर बोले- इसका हल तो बड़ा आसान है. बस्ती के अन्तिम छोर पर एक बुढ़िया रहती है, एकदम कंगाल. उसके न कोई कमानेवाला है ना वह कुछ कमा पाने में समर्थ है.
उसे मात्र आधा किलो आटा दान दे दो. अगर वह यह दान स्वीकार कर ले तो समझो इतना पुण्य उपार्जित हो जाएगा कि तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी. सेठ को बड़ा आसान उपाय मिला था.
उसे सब्र कहां था. घर पहुंच कर सेवक के साथ एक बोरी आटा लेकर पहुंच गया बुढिया के झोपड़े पर. सेठ नें कहा-माताजी मैं आपके लिए आटा लाया हूं इसे स्वीकार कीजिए.
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