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दरअसल समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मीजी से पहले उनकी बड़ी बहन ज्येष्ठा जिनका नाम दरिद्रा भी है, वह प्रकट हुई थीं. ज्येष्ठा विष्णु भगवान से विवाह करना चाहती थीं किंतु भगवान ने लक्ष्मीजी का वरण किया. इससे ज्येष्ठा और लक्ष्मीजी में मनमुटाव था जो समय-समय पर बाहर आता रहता था. तय हुआ कि दोनों बहनों में कौन श्रेष्ठ है, इसका फैसला करने के लिए दोनों अपने-अपने प्रभाव का प्रदर्शन करेंगी.

दोनों बहनों ने अपने प्रभाव का जोर आजमाने के लिए मंदिर के एक पुजारी हरिनाथ को चुना जो बड़ा विष्णु भक्त था. दूसरे दिन दोनों वेश बदलकर विष्णु मंदिर पहुँचीं मंदिर के द्वार पर बैठ गईं.हरिनाथ पूजा करके लौटने लगा तो ज्येष्ठा ने लक्ष्मी से अपना प्रभाव दिखाने को कहा. लक्ष्मीजी ने एक खोखला बांस हरिनाथ के रास्ते में रख दिया. बांस के अंदर सोने के सिक्के भरे थे.

ज्येष्ठा ने बांस को छूकर कहा, ‘अब तुम मेरा प्रभाव देखो.’ हरिनाथ ने रास्ते में सुंदर बांस पड़ा देखा तो उठा लिया. सोचा घर में इसका कुछ न कुछ काम निकल ही आएगा. अभी वह पंडित थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उसे एक लड़का मिला. लड़के ने हरिनाथ से कहा, ‘पंडित जी! मुझे अपनी चारपाई के लिए बिल्कुल ऐसा ही बांस चाहिए. यह बांस कहां मिलता है मैं खरीद लाता हूं?’

पंडित ने कहा, ‘मैंने खरीदा नहीं है. रास्ते में पड़ा था उठा लिया. तुम्हें ज़रूरत है तो तुम ही रख लो. बाज़ार में यह एक रुपये से कम का नहीं होगा.’ लड़के ने चवन्नी देते हुए कहा, ‘मगर मेरे पास तो यह चवन्नी ही है, पंडितजी. अभी तो आप इसे ही रखिए बाकी के बारह आने शाम को घर दे जाऊँगा.’ पंडितजी खुश थे कि उन्होंने सड़क पर पड़े बांस से रुपया कमा लिया. चवन्नी पूजा की डोलची में रखी और घर की ओर चला.

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