विश्वरूप देवगुरू के रूप में देवताओं के लिए उच्चस्वर में मंत्रोच्चार करते हवन डालते थे किंतु गुप्त रूप में असुरों के लिए भी यज्ञ का भाग दे देते थे.

एक यज्ञ में विश्वरूप को इंद्र ने असुरों के लिए हविष चढ़ाते देखा तो क्रोध में आपा खो बैठे. इंद्र भूल गए कि ब्रह्मा ने उन्हें विश्वरूप के असुर प्रेम पर संयम रखने को कहा था.

क्रोधित इंद्र ने विश्वरूप के सर काट दिए. इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा. देवराज होने के कारण इंद्र के पास यह पाप अस्वीकार करने की शक्ति थी लेकिन उन्होंने शाप स्वीकार किया.

विश्वरूप की हत्या से उनके पिता त्वष्टा बड़े क्रोधित हुए. उन्होंने इंद्र को भस्म करने के लिए यज्ञकुंड में हविष डालना शुरू किया. किंतु क्रोधित त्वष्टा से मंत्र उच्चारण में चूक हो गई.

इसका परिणाम यह हुआ कि वृतासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली और भयानक असुर पैदा हो गया.

त्वष्टा ने देवराज का अंत करने के लिए आह्वान किया था. इसलिए उसके परिणाम स्वरूप जन्मा वृतासुर देवताओं को निगलने लगा. भय से देवता जान बचाकर भागे.

उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली और रक्षा की प्रार्थना की. श्रीहरि ने इंद्र को उसी दधीचि की शरण में जाने को कहा जिसका इंद्र ने पहले घोर अपमान किया था.

दधीचि ने इंद्र की प्रार्थना सुनी और देवकल्याण के लिए क्या किया इस प्रसंग की चर्चा भागवत कथा के अगले भाग में पढ़ें.

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