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शिवजी ने अब ब्रह्मा जी को बुलाया और कहा कि अब आप स्वयं जाइए और जो कार्य योगिनियां और सूर्यदेव न कर पाए वह कार्य अब आप करें.
ब्रह्माजी वृद्ध ब्राह्मण का वेष बनाकर गए और कहा कि मैं यहां यज्ञ करना चाहता हूं और उस कार्य में तुम्हें सहायक बनाना चाहता हूं. दिवोदास ने अपने राज्य का कोष उनके लिए खोल दिया.
दिवोदास धर्म से अडिग न हुआ. ब्रह्माजी ने दस अश्वमेध यज्ञ पूरे किए. इतने लंबे समय तक वहां रहने पर भी वह दिवोदास के राज्य में कोई कमी न ढूंढ सके.
जहां ब्रह्माजी ने वे यज्ञ पूरे किए काशी का वही मंगलदायक रूद्रसरोवर तीर्थ दशाश्वमेध के नाम से जाना गया. बाद में गंगाजी का अवतरण हुआ और उन्होंने दशाश्वमेध का स्पर्श किया.
ब्रह्माजी को जो कार्य सौंपा गया था वह तो हो नहीं सका. वह भोलेनाथ के पास कैसे जाते! इसलिए ब्रह्माजी दशाश्वमेधेश्वरलिंग की स्थापना कर वहीं स्वयं भी स्थित हो गए.
भोलेनाथ द्वारा भेजे गये सभी लोग भेष बदलकर काशी में ही वास करने लगे थे. बहुत समय बीतने पर भी शिवजी का कोई दूत न लौटा तो उन्हें चिंता हुई कि आखिर क्या हुआ. उन्होंने विष्णुजी से चर्चा की.
विष्णुजी तो सब जान ही रहे थे. उन्होंने कहा कि मैं स्वयं पता करता हूं. इसके लिए एक योजना तैयार की गयी. विष्णुजी ने कहा कि जो कार्य है वह बिना बुद्धिमान गणेशजी के पूरा नहीं हो सकता.
गणेशजी को नायक बनाकर इस कार्य में सभी जुटे.
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