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इंद्र मैं अपनी आठ सहयोगी देवियों के साथ किसी स्थान पर आती हूं और उन आठों के साथ ही उसका त्याग कर देती हूं.
अब मैं आशा, श्रद्धा, ऋति, शांति, विजित, सन्नति, क्षमा और वृति इन आठ देवियों के संग तुम्हारे पास वास करने आ रही हूं.
तुम उपरोक्त दोषों से मुक्त रहना अन्यथा तुम्हें भी त्याग दूंगी. मैंने अब तक असंख्य व्यक्तियों का त्याग किया है.
भीष्म पितामह ने कहा- युधिष्ठिर तुम पर भी बहुत सी आपदाएं आई हैं, भूलवश तुमने उपरोक्त दोषों का वरण किया था. द्युत क्रीडा सबसे बड़ा दोष था. अब तुम राजा बनोगे इसलिए इनका विशेष ध्यान रखना.
राजा हो या साधारण मनुष्य उसे लक्ष्मी की कृपा चाहिए. लक्ष्मी की कृपा सदैव चाहिए तो उसे अपने अंदर सद्गुणों का वास करना होगा. पूर्वजन्मों के कर्मों के प्रताप से कई बार लक्ष्मी दुराचारी के पास भी ठहरने को विवश रहती हैं जिस पर वह इतराता है.
परंतु उसे यह पता नहीं होता कि अगर उसके कर्म सुंदर होते तो वह राजा बनता. हे युधिष्ठिर, जैसे-जैसे उसके संचित पुण्यकर्म समाप्त होते हैं लक्ष्मी उसमें रोग, वासना, हिंसा आदि दुर्गुणों के लिए स्थान बनाती जाती हैं. इससे उस व्यक्ति का अंत बड़ा दुखद होता है.
कोई भी निर्णय बहुत सोच-विचारकर लेना अन्यथा गौतम की तरह तुम्हें भी बहुत पछताना पड़ेगा. मैं तुम्हें कभी गौतम की कथा सुनाउंगा जिसने अपनी पत्नी के वध का आदेश अपने पुत्र चिरकारी को दे दिया था.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
Good I like this.
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Your comment..jai shri vishwakarma ji
Good story