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देवी बोलीं- जो धैर्यवान हैं, अध्ययन, यज्ञ-योग करते हैं, गुरू, पितरों और अतिथियों का सत्कार करते हैं मैं उनके पास सदैव रहती हूं.
जो जितेंद्रिय, परोपकारी, श्रद्धालु, क्रोध को जीतने वाले और ईर्ष्यारहित हैं, मधुरभाषी, कृतज्ञ और लज्जाशील हैं, मैं उनके पास लंबे समय तक ठहरती हूं.
इंद्र ने पूछा- देवी,किन परिस्थितियों में आप अपने कृपापात्र का त्याग कर देती हैं?
लक्ष्मीजी बोलीं- जो बड़े-बूढ़े, विद्वानों पर व्यर्थ दोष निकालते हैं, बड़ों का सम्मान नहीं करते, निदिंत कर्म से धन उपार्जन करते हैं वह स्थान मुझे पसंद नहीं आता.
जहां पिता-पुत्र, पति-पत्नी आपस में क्लेश करते हैं, जो दूसरों का धन हड़पते हैं, जहां माता-पिता को संतान से अन्न की भीख मांगनी पड़ती है मैं उसका तत्काल त्याग करती हूं और दोबारा वापस भी नहीं आती.
जो कृतध्न हैं, नास्तिक हैं, पापी हैं, आलस्य, क्रोध, लोभ, शत्रुता और अभिमान आदि दोषों से घिरे रहते हैं, जो गुरुजनों और बड़ों की सेवा नहीं करते मैं उन्हें छोडकर चली जाती हूं.
मेरे जाने के बाद मेरी बहन ज्येष्ठा का निवास हो जाता है जो उसे दरिद्र बना देती हैं.
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Good I like this.
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Your comment..jai shri vishwakarma ji
Good story