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एक दिन पांडव वनवास काल में भ्रमण करते हुए भूखे प्यासे उस तालाब के पास पहुँचे जिससे वीर बर्बरीक सिद्ध अम्बिकाओं के पूजन हेतु जल लिया करते थे. महाबली भीम प्यास से उतावले थे. वह बिना हाथ-पैर धोए ही उस तालाब में प्रवेश कर गए. बर्बरीक ने गर्जना करते हुए भीम को ऐसा करने से रोका.
बात बढ़ गई. भीम और बर्बरीक के बीच मल्ल युद्ध शुरू हुआ. बर्बरीक ने महाबली भीम को अपने हाथों से उठा लिया और जैसे ही उन्हें सागर में फेंकना चाहा, सिद्ध अम्बिकाएं प्रकट हो गईं. उन्होंने बर्बरीक से भीम का वास्तविक परिचय करवाया.
सत्य जानकर बर्बरीक को बड़ा शोक हुआ और वह अपने प्राणों का अंत करने को तैयार हो गए. सिद्ध अम्बिकाओं एवं भगवान शंकर ने बर्बरीक का मार्ग दर्शन करते हुए उन्हें भीम के चरणस्पर्श कर क्षमा याचना का सुझाव दिया. महाबली भीम अपने सुपौत्र के पराक्रम से प्रसन्न हुए और बर्बरीक को आशीर्वाद देकर विदा हो गए.
महाभारत की रणभेरी बज चुकी थी. वीर बर्बरीक को इसकी सूचना मिली तो अपनी माता मोरवी एवं आराध्य शक्तियों की आज्ञा लेकर युद्धक्षेत्र के लिए चल पड़े. नीले अश्व पर सवार वीर बर्बरीक युद्धक्षेत्र पहुंचे. उन्होंने पांडव सेना की छावनी के पास अपना अश्व रोका और संवाद ध्यान से सुनने लगे.
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