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राजा ने संन्यासी को वचन दिया कि वह प्रजा के कष्ट को समझकर अपनी भूल सुधारेगा. उस महल को कारागार बना दिया गया.
कितना सुंदर निर्णय था. जिसे राजा प्राण बचाने के योग्य समझ रहा था वास्तव में वह कारागार ही तो था. भय का भाव बलशाली प्राणी से भी उसकी बुद्धि और बल छीन लेता है फिर यहीं से खुलते हैं असफलता के रास्ते.
भय आवश्यक है- कुसंगति, व्यसन, अनाचार, दूसरों के प्रति हिंसा के भाव और उसके परिणाम से. बाकी सब तो प्रभु पर छोड़ दें.
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संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
प्रभु शरणम्
very educational and its also make man to develop a strong will power.