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विद्यापति को अचरच हुआ पर भोलेबाबा का आदेश कैसे टालते. भेद छुपाने को राज़ी हो गये. उनको तो बिना मांगे संसार की सबसे अनमोल वरदान मिल चुका था. शिवजी सदैव साथ रहें और क्या चाहिए.

उगना और विद्यापति पहले की ही तरह रहने लगे. एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कुछ काम दिया. उगना ने उसे पूरा किया लेकिन सुशीला उससे संतुष्ट न हुईं.

सुशीला इससे इतनी नाराज हुई कि आव देखा देखा न ताव चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर लगी उगना बने शिवजी की पिटाई करने. विद्यापति ने जब यह दृश्य देख तो बेचैन हो गए.

अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा- अरे मूर्ख ये साक्षात शिवजी हैं. इन्हें जलती लकड़ी से मार रही हो. नरक् जाओगी. विद्यापति के मुंह से यह निकलते ही शिवजी वहां से अंतर्धान हो गये.

इसके बाद तो उगना बने शिवजी को विद्यापति पागलों की भांति उगना-उगना कहते हुए हर जगह ढूंढने लगे. भक्त की ऐसी दशा देखकर परम दयालु महादेव को दया आ गयी.
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