एक दिन नारद जी विष्णु लोक को जा रहे थे. रास्ते में एक संतानहीन दुखी आदमी मिला. उसने नारदजी की खूब प्रशंसा की. नारदजी प्रसन्न हो गए.

उन्हें खुश देखकर उस आदमी ने कहा- नारदजी आप चाहें तो क्या संभव नहीं. अगर आप मुझे आशीर्वाद दे देंगे तो मुझे संतान प्राप्त हो जाए.

नारदजी ने कहा- मैं भगवान श्रीहरि के पास जा रहा हूँ. उनसे तुम्हारा मनोरथ बताउंगा. उनकी जैसी इच्छा होगी लौटते हुए बताऊँगा.

नारद ने भगवान से उस व्यक्ति के संतान सुख के लिए कहा तो प्रभु ने यह कहते हुए टाल दिया कि उसके पूर्वजन्म के ऐसे कर्म ऐसे हैं कि अगले कई जन्मों तक उसे संतान नहीं होगी.

अब नारदजी क्या कहते. उन्होंने उस व्यक्ति के सामने जाना भी उचित नहीं समझा. रास्ता बदलकर निकल लिए.

इतने में एक दूसरे महात्मा भी विष्णुलोक के लिए उधर से निकले. उस व्यक्ति ने उनसे भी संतान के लिए प्रार्थना की.

उन्होंने आशीर्वाद दिया और नौ महीने बाद उसके घर में संतान पैदा हुई. कई साल बाद वह व्यक्ति फिर नारदजी से टकराया.

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