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ग्रीष्म ऋतु थी. ग्वाल बाल गायें चराते थक गए तो मन हुआ कि कुछ मनोरंजन किया जाए. श्रीकृष्ण ने अपने अग्रज बलराम और अन्य बालसखाओं के सामने खेलने का प्रस्ताव रखा.

सभी सहर्ष तैयार हुए तो खेल की तैयारी होने लगी. कंस का भेजा हुआ प्रलंबासुर जो लगातार श्रीकृष्ण और बलरामजी पर नजर रखे हुए था, वह भी वहां पहुंचा.

प्रलंबासुर ने ग्वालबाल का रूप धरा और उसी टोली में शामिल हो गया. श्रीकृष्ण ने उसे ताड़ लिया. प्रलंबासुर अत्यंत बलशाली मायावी असुर था. उसका शरीर विशाल था किंतु एक छोटे-से बाल सखा के रूप में वहां आया हुआ था.

वह श्रीकृष्ण और बलराम का वध करना चाहता था. श्रीकृष्ण ने सोचा किसी युक्ति से इसका वध करना चाहिए. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि आज मित्रमंडली दो टोली में बंटेगी और हम नया खेल खेलेंगे.

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