भागवत महापुराण की कथा शृंखला बीच में रूक गई थी. आज से वह पुनः आरंभ हो रही है. हम अब तक की प्रकाशित सभी भागवत कथाओं को एक बार फिर से दे रहे हैं.

इस तरह जो लोग नए जुड़े हैं वे इसे पढ़ सकेंगे और जो पुराने हैं उनका तारतम्य बना रहेगा. आज 10 कथाएं एक साथ हैं. प्रतिदिन एक-एक कथा दी जाएगी. जल्द ही पुरानी कथाएं पूर्ण हो जाएंगी तो नई कथाओं का आरंभ होगा.

तुंगभद्रा नदी के तट पर बसे एक सुन्दर नगर में आत्मदेव नाम का एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था. उसका विवाह धुंधुली नामक एक उच्च कुल की सुन्दर कन्या से हुआ था.

धुंधुली रूप में जितनी सुन्दर थी, स्वभाव से उतनी ही दुष्ट, लोभी, ईर्ष्यालु व क्रूर. झगड़ालू पत्नी के साथ भी आत्मदेव की गृहस्थी सन्तोषपूर्ण चल रही थी.

विवाह के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी दोनों को सन्तान नहीं हुई. सभी तरह के पूजा- हवन कराके देख लिए आत्मदेव के संतान न हुई.

समाज से मिलने वाले ताने के कारण हताश आत्मदेव ने प्राण त्यागने की मंशा से अपना घर छोड़कर निकल गया. वह एक सरोवर के किनारे पहुंचे.

उसी के किनाने दुखी हृदय से बैठ गए. तभी एक तेजस्वी सन्यासी वहाँ से गुजर रहे थे. आत्मदेव को इस प्रकार दुःखी देखकर उन्होंने चिन्ता का कारण पूछा.

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