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परीक्षित के पूछने पर शुकदेवजी ने भागवत कथा आगे बढ़ाते हुए ययाति के बड़े पुत्र यदु के वंश का वर्णन आरंभ किया. शुकदेवजी बोले- यदु का वंश परम पवित्र है. इस वंश की कथा सुनने से पाप नष्ट होते हैं. स्वयं श्रीकृष्ण ने इस वंश में जन्म लिया.
यदु के चार पुत्र थे- सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपु. सहस्त्रजित ने अपने कुल की वृद्धि की और उसमें हैहय हए. हैहय बड़े प्रतापी थे. इस कारण आगे चलकर यह कुल हैहयवंश के नाम से भी जाना गया.
इसी कुल में कृतवीर्य हुए. कृतवीर्य के पुत्र का नाम था अर्जुन. वह परम प्रतापी था पृथ्वी के सातों द्वीपों पर उसने एकछत्र राज्य कायम किया. समस्त भूमंडल उसके अधीन था.
उसने श्रीहरि के अंशावतार दत्तात्रेयजी से योगविद्या, अणिमा और लघिमा जैसी दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की थीं. संसार का कोई भी सम्राट यज्ञ, दान, तपस्या, योग, शास्त्र और पराक्रम में अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकता था.
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