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भगवान श्रीकृष्ण की वृन्दावन में लीलाएं चल रही थीं. अपनी लीलाओं से प्रभु अनेक शापित जीवों का जो शापवश वृक्ष और राक्षस आदि बने थे उनका उद्धार कर रहे थे.
प्रभु गाएं चराते थे. वृंदावन के लोगों की आजीविका का सबसे बड़ा साधन पशुधन था किंतु उसका वैसा सम्मान नहीं था जो होना चाहिए. प्रभु ने गोप-गोपियों को सदबुद्धि देने के लिए लीला रची.
गोप इन्द्र-यज्ञ की तैयारी कर रहे थे. श्रीकृष्ण ने नंदबाबा से पूछा कि यज्ञ क्यों किया जा रहा है. नंद बोले- इंद्र के कारण ही हमें जल और अन्न प्राप्त होता है. उन्हें प्रसन्न करना जरूरी है. वह कुपित हो गए तो बाढ़ या सुखाड़ हो सकता है.
इंद्र की कृपा से जो अन्न प्राप्त होता है वह हम उन्हें वापस भेंट कर देते हैं. जो शेष रहता है उसी से हम मनुष्यों को जीवनयापन की अनुमति है. मनुष्य की खेती और प्रयत्नों का फल देने वाले इंद्र ही हैं इसलिए उनकी उपासना जरूरी है.
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