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सहस्राक्ष अभिमानी था. रानियों के साथ क्रीडा में डूबे राजा को अहंकार हुआ. उसने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम तक नहीं किया. एक रानी ने कहा कि हमें जल से बाहर आकर महर्षि को प्रणाम करना चाहिए अन्यथा उन्हें अच्छा नहीं लगेगा.
सहस्राक्ष की तो मति मारी गई थी. उसके पास कुछ चमत्कारिक शक्तियां थीं. उसने दुर्वासा का सम्मान तो दूर रानियों का मनोरंजन करने के लिए उनकी ओर माया से तूफान की तरह तेज हवाएं चलानी शुरू कर दीं.
दुर्वासा राजा की इस करतूत से क्रोधित हो गए. उन्होंने शाप दिया कि सहस्त्राक्ष तुमने मनोरंजन के लिए मेरा अनादर किया. मेरी हंसी उड़ाने के लिए तूफान बनाया. इसका तुम्हें दंड मिलेगा. जा तू राक्षस होकर तूफ़ान पैदा कर.
दुर्वासाजी का शाप सुनने ही राजा उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. उसकी रानियां भी विलाप करके क्षमा मांगने लगीं. दुर्वासा बोले कि मेरा शाप तो वापस नहीं हो सकता किन्तु तुम्हारी मुक्ति का मार्ग बता सकता हूं.
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