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तृणावर्त के लिए उनका भार संभालना असंभव होता जा रहा था. वह बवंडर की गति जितनी तेज करता रहा कान्हा उतना ही भार बढ़ाते रहे. वह बेचैन हो गया. श्रीकृष्ण ने उसे एक चट्टान पर पटका और गला घोंटकर उसका अंत कर दिया.
उसके मरने के बाद बवंडर शांत हुआ तो बालकृष्ण की खोज होने लगी. यशोदा मैया और रोहिणी जी के साथ-साथ अन्य गोकुल की स्त्रियां विलाप करने लगीं. खोज हुई तो प्रभु एक स्थान पर राक्षस के ऊपर कूदकर खेल रहे थे.
उन्हें तुरंत लेकर यशोदाजी आईँ और फिर से उनकी नजर उतारने लगीं. उन्होंने सभी देवों का स्मरण किया और ऐसे भयंकर बवंडर में अपने लल्ला की रक्षा के लिए सबका आभार किया. प्रभु माता की इस ममता का आनंद लेते रहे.
तृणावर्त दरअसल दुर्वासा द्वारा शापित राजा सहस्त्राक्ष था जिसका वधकर प्रभु ने उद्धार किया. राजा सहस्राक्ष अपनी रानियों सहित नदी में क्रीड़ा कर रहे थे. तभी वहां से महर्षि दुर्वासा गुजरे.
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