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मित्रों, दो दिनों से मैं राजा ययाति और देवयानी की कथा सुना रहा हूं. उसमें कई बार कच और देवयानी के प्रेम का संदर्भ और कच तथा देवयानी को एक दूसरे को दिए गए शाप का संदर्भ आया.
कई लोगों ने आग्रह किया कि उन्हें इसकी पृष्ठभूमि बताई जाए. पिछली कथा में मैंने वादा किया था कि ययाति को शुक्राचार्य के मिले शाप और शापमुक्ति का प्रसंग सुनाउंगा परंतु उस प्रसंग पर जाने से पहले पृष्ठभूमि टटोल लेते हैं. आज मैं आपको कच-देवयानी की कथा सुनाता हूं.
देवताओं और असुरों के युद्ध में असुर भारी इसलिए पड़ रहे थे क्योंकि उनमें प्राण-शक्ति अधिक थी. इसके अलावा शिवजी मे मिली मृत संजीवनी विद्या के बल पर शुक्राचार्य मृत असुरों को फिर से जिंदा कर देते थे.
हालांकि देवता अमर थे, बुद्धि में असुरों से श्रेष्ठ थे लेकिन यदि मोटी बुद्धि और खल स्वभाव का जीव मरे ही नहीं तो सज्जनों को बहुत सताता है. यही हाल असुरों का था.
देवताओं की सहायता करने आने वाले मनुष्य अमर नहीं थे. मृत संजीवनी का ज्ञान नहीं होने से वह युद्ध में मारे गए मानवों को फिर से जीवित नहीं कर पाते थे. इससे देवता चिंतित थे.
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