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उस ऋषि ने श्रीक्षेत्र की महिमा का इतना वर्णन किया कि राजा व्याकुल हो गया दर्शन को. उसके मन में बस भगवान नीलमाधव के उस छवि के दर्शन की उत्कंठा रहने लगी. राजा का किसी काम में मन न लगता. वह भगवान के मंदिर में पहुंचा और उसके करूण प्रार्थना की.

हे नारायण यदि मैं आपका सच्चा भक्त हूं, यदि मैंने निष्ठापूर्वक प्रजापालन किया है यदि मैं धर्म पर पक्का हूं तो आप मुझे दर्शन दिया. प्रभु उन महात्मा द्वारा सुने आपके रूप के दर्शन के बिना यह जीवन व्यर्थ लगता है. यदि आप मुझे दर्शन न देंगे तो मैं प्राण त्याग दूंगा.

भगवान के सामने करूण प्रार्थना करते, आंसू बहाते राजा इंद्रद्युम्न अचेत हो गए. वह गहरी निद्रा में चले गए.  राजा ने एक सपना देखा. सपने में उन्हें एक देववाणी सुनाई पड़ी- तुम्हें विशेष कार्य के लिए चुना गया है. तुम निराशा का भाव त्याग दो. भगवान नीलमाधव के जिस विग्रह दर्शन के लिए तुम इतने व्यग्र हो, उसकी खोज करो. तुम अपनी ओर से प्रयास करो, तुम्हें देवों की सहायता प्राप्त होती रहेगी.

तुम एक भव्य मंदिर का निर्माण कराओ. उसके लिए उपयुक्त विग्रह की प्राप्ति भी तुम्हें समय आने पर हो जाएगी.

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यह स्वप्न सुनकर राजा अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठा. वह भागकर अपनी राजसभा में गया.

राजा ने अपने मंत्रियों, पुरोहितों को सारा स्वप्न कह सुनाया. राजपुरोहित के सुझाव पर शुभमुहूर्त में पूर्वी समुद्रतट पर एक विशाल मंदिर के निर्माण का निश्चय हुआ. वैदिक-मंत्रोचार के साथ मंदिर निर्माण का श्रीगणेश हुआ.

राजा इंद्रद्युम्न के मंदिर बनवाने की सूचना शिल्पियों और कारीगरों को हुई. सभी इसमें योगदान देने पहुंचे. दिन रात मंदिर के निर्माण में जुट गए. कुछ ही वर्षों में मंदिर बनकर तैयार हुआ.

सागरतट पर विशाल मंदिर का निर्माण तो हो गया परंतु भगवान की मूर्ति की समस्या जस की तस थी. राजा फिर से चिंतित होने लगे. एक दिन मंदिर के गर्भगृह में बैठकर इसी चिंतन में बैठे राजा की आंखों से आंसू निकल आए.

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राजा ने भगवान से विनती की- प्रभु आपके किस स्वरूप को इस मंदिर में स्थापित करूं इसकी चिंता से व्यग्र हूं. मार्ग दिखाइए. आपने स्वप्न में जो संकेत दिया था उसे पूरा होने का समय कब आएगा? देवविग्रह विहीन मंदिर देख सभी मुझ पर हंसेंगे.

राजा की आंखों से आंसू झर रहे थे और वह प्रभु से प्रार्थना करते जा रहे थे- प्रभु आपके आशीर्वाद से मेरा बड़ा सम्मान है. प्रजा समझेगी कि मैंने झूठ-मूठ में स्वप्न में आपके आदेश की बात कहकर इतना बड़ा श्रम कराया. हे प्रभु मार्ग दिखाइए.

राजा दुखी मन से अपने महल में चले गए. उस रात को राजा ने फिर एक सपना देखा.

सपने में उसे देववाणी सुनाई दी- राजन! यहां निकट में ही भगवान श्रीकृष्ण का विग्रहरूप है. उस विग्रह के तुम्हारे द्वारा बनाए मंदिर में स्थापना ही विधि का विधान है. वह होकर रहेगा. उस दिव्य विग्रह को खोजने का प्रयास करो, तुम्हें दर्शन मिलेंगे.

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