कार्तिक कृष्ण पक्ष में करवा चौथ (Karwa Chauth) और अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) दो बड़े व्रत हैं जिसे महिलाएं अपने पति व संतान की लंबी और सुखद जीवन की कामना के लिए करती हैं. एक माता द्वारा अनहोनी को होनी कर देने की महिमा का व्रत है- अहोई अष्टमी .
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करवा चौथ के चार दिन बाद होती है अहोई अष्टमी.
अहोई का अर्थ होता है- अनहोनी को होनी बनाना. एक माता अपनी संतान की रक्षा, उसके कल्याण के लिए किसी भी मुसीबत से टकरा सकती है, उसके सारे संकट खुद झेलकर संतान की सब प्रकार से रक्षा करती है. एक साहुकार की छोटी बहू ने ऐसी ही अनहोनी को होनी कर दिखाया था.
श्रद्धाभक्ति के साथ माताएं संतान सुख की प्राप्ति, संतान के उत्तम भविष्य के लिए यह व्रत करती हैं. हम आपको अहोई माता के व्रत-पूजा की पूरी विधि, व्रत कथा मुहूर्त और अहोई माता की आरती बताएंगे. इस व्रत का बड़ा माहात्म्य कहा गया है.
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी अहोई अथवा आठें कहलाती है. अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं.
एक जानकारी की बात
कार्तिक महीने में कार्तिक महात्म्य की कथा सुनने का विशेष महत्व कहा गया है. कहते हैं जो इस कथा का श्रवण करते हैं या अन्य लोगों को सुनाते हैं उनपर भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं. तो यदि आप स्नान पूरे विधि-विधान से न भी कर पाते हों तो कार्तिक महात्म्य की कथा तो पढ़ ही सकते हैं और दूसरों को सुना सकते हैं. खासतौर से घर के बड़े बुजुर्गों को. पूरे माह में थोड़ा-थोड़ा करके कम से कम पांच बार कथा अवश्य पढ़ लेनी चाहिए. बहुत समय नहीं लगता लेकिन बहुत पुण्यकारी है.
कथा का प्रबंध हम आपके लिए प्रभु शरणं ऐप में पहले ही कर चुके हैं. छोटे-छोटे अध्यायों में पूरी कथा डाल दी गई है. आप प्रभु शरणं ऐप डाउनलोड करें प्लेस्टोर से और पढ़े पूरा कार्तिक महात्म्य. धर्म प्रचार के लिए बनाया गया प्रभु शरणं ऐप एकदम फ्री है. आप इसे देखें तो सही एक बार. आपको लगेगा कि आपकी सारी तलाश पूरी हुई. न पसंद आए तो डिलीट कर दीजिएगा पर बिना देखे कैसे निर्णय किया जा सकता है.
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अहोई व्रत की विधि:
-व्रती को दिनभर उपवास रखना होता है. सायंकाल में भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं.
-उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं. आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं. उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है.
-माताएं प्रात: उठकर स्नान करे और यह कहे हुए व्रत का संकल्प लें- हे अहोई माता मैं अपनी संतान की उन्नति, शुभता और आयु वृ्द्धि के लिए व्रत कर रही हूं, इस व्रत को विधिवत पूरा करने की मुझे शक्ति दें.
-अहोई माता के साथ ही माता माता पार्वती की पूजा भी की जाती है क्योंकि माता गौरी पार्वती संतान की रक्षा करने वाली हैं.
-उपवास करने वाली स्त्रियों को व्रत के दिन क्रोध से बचना चाहिए.
-उपवास के दिन मन में बुरा विचार लाने से व्रत के पुण्य फल घटते हैं. व्रत में दिन की अवधि में सोना नहीं चाहिए.
-अहोई माता का चित्र गेरूवे से बनाया जाता है. इसमें सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र भी अंकित किया जाता है. (ऊपर चित्र देखें)
-संध्याकाल में इन चित्रों की पूजा की जाती है. पूजा के लिए माताएं चाँदी की एक अहोई भी बनाती हैं जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं.
-उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है.
-अहोई को गले में धारण किया जाता है.
-जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें.
-सायंकाल में एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूँ के लेकर अहोई माता की कथा सुनें.
-फिर आरती कर लें.
-कथा के बाद अहोई की माला गले में पहन लें.
-जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें.
-इसके पश्चात सास-ससुर और घर में बडे-बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लें.
-इस व्रत में तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है और तारों की आरती उतारी जाती है.
-इसके पश्चात संतान से जल ग्रहणकर, व्रत का समापन किया जाता है.
-व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें. सास को रोली तिलक लगाकर चरण स्पर्श करते हुए व्रत का उद्यापन करें.
अब जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत की संक्षिप्त कथाः
अहोई अष्टमी की संक्षिप्त व्रत कथाः
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली.
साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी.
मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी. तुम्हारे संतान न होगी.
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी रोने लगी और उसे निपूता न करने की विनती करने लगी. स्याहू ने कहा यदि तुम्हारी सातों भाभियों में से कोई अपनी कोख बंधाने को तैयार हो तो तुम बच सकती हो.
ननद एक-एक करके सभी भाभियों से विनती करती रही कि वे उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. कोई तैयार न हुआ.
आखिर ननद को रोते-बिलखते देख सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई.
इसके नतीजा यह हुआ कि छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते वे जन्म के सात दिन बाद ही मर जाते. इस तरह उसके सात पुत्रों की मृत्यु हो गई.
संतान के बार-बार मरने से दुखी बहू को किसी ने एक महात्माजी के बारे में बताया. महात्माजी की बड़ी प्रसिद्धि थी. वह सिद्ध महात्मा थे.
महात्माजी को उसने सारी बात विस्तार से कह सुनाई कि उसके साथ क्या-क्या हो रहा है.
सारी बात जानकर उन्होंने उसे दिलासा दिया और कहा कि तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है. अब जो शेष पाप बचा है उसे भी समाप्त करने का प्रयास करो.
इसके लिए तुम्हें सुरही गाय की सेवा करनी होगी. तुम सुरही गाय की सेवा करते हुए अहोई अष्टमी के दिन माता भगवती की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों से अपराध के लिए क्षमा याचना करो. ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप समाप्त हो जायेगा.
महात्माजी द्वारा पूजन की सारी विधि समझने के बाद छोटी बहू सुरही गाय की सेवा करने लगी. अहोई माता और भगवती की पूजा करने लगी और सेह तथा उसके बच्चों का चित्र बनाकर उससे क्षमा प्रार्थना करती रही.
सुरही गाय उसकी सेवा से प्रसन्न हो गई.
प्रसन्न होकर उसने पूछा- तुम्हें क्या चाहिए, अपनी मनोकामना बताओ मैं उसे पूरा करने का प्रयास करूंगी.
छोटी बहू ने उसकी पूजा-स्तुति के बाद सारी आपबीती कह सुनाई. गाय उसे स्याहु के पास लेकर जाने को तैयार हुई.
रास्ता लंबा था. चलते-चलते बहू थक गई. फिर गाय ने थोड़ा आराम करने को कहा. अचानक छोटी बहू की नज़र एक ओर गई तो उसने देखा कि कि एक सांप, गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है. उसने झटपट पास पड़ा एक पत्थर उठाया और सांप पर चला दिया. सांप उसकी चोट से मर गया और गरूड के बच्चे की रक्षा हो गई.
इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ गई. उसने चारों ओर खून बिखरा हुआ देखा तो उसे लगा कि शायद इस स्त्री ने मेरा बच्चा मार दिया है. उसने छोटी बहु पर अपने कठोर चोंच से प्रहार शुरू किया.
वह लहुलूहान होकर बोली- मैंने तुम्हारे बच्चे की जान बचाई. उसका यह पुरस्कार दे रही हो. यह तो बड़ी कृतघ्नता है. यह सुनकर गरूड़ पंखनी ने देखा तो उसका बच्चा सुरक्षित था.
वह खुश हो गई. उसने छोटी बहू से वन में आने का कारण पूछा तो उसने उसे भी सारा हाल कह सुनाया. गरूड पंखनी ने कहा कि वह उनको शीघ्रता से स्याहू के पास पहुंचा सकती है. उसने दोनों को स्याहु के पास पहुंचा दिया.
छोटी बहू ने स्याहू की सेवा-अर्चना की. इससे स्याहु प्रसन्न हो गई और उससे कुछ मांगने को कहा. छोटी बहू ने मांगी उसे सात पुत्र और सात बहुओं का अशीर्वाद चाहिए. स्याहु ने ऐसा ही आशीर्वाद दे दिया.
जिस स्याहू के शाप से उसकी कोख बंध गई थी अब उसने ही सात पुत्रों का आशीष दे दिया था. इस तरह छोटी बहु का घर पुत्र और फिर समय आने पर पुत्रवधुओं से हरा भरा हो जाता है.
इसके बाद बिंदायकजी की कथा सुनी जाती है.
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बिन्दायक (Bindayak ji ) जी की कथा
दूबड़ी आठे की कथा के बाद बिन्दायक जी की यह कथा भी कही जाती है. प्राचीन समय में एक बुढ़िया रहती थी. वह हर रोज मिट्टी के गणेश जी बनाकर उनकी पूजा करती थी.
उस बेचारी बुढ़िया के मिट्टीजी के बनाए गणेश जी रोज गल जाते तो वह रोज बनाती. उस बुढ़िया के घर के सामने किसी सेठ का मकान बन रहा था.
एक दिन वह बुढ़िया वहाँ गई और पत्थर के कारीगर से बोली- राजगीर भाई! मेरे मिट्टी के गणेश जी रोज गल जाते हैं इसलिए आप मेरे लिए एक पत्थर के गणेश जी बना दो. गणेश जी की आप पर बहुत कृपा होगी.
इस पर राजगीर ने कहा- माई, जितनी देर हम तुम्हारे पत्थर के गणेशजी बनाने में लगाएंगे तब तक सेठ की एक दीवार बन जाएगी. यह सुनकर बुढ़िया को बहुत दुख हुआ और वह अपने घर वापस आ गई.
राजगीर सेठ जी की दीवार बनाने में लग गया लेकिन एक दिन बीत जाने पर भी दीवार पूरी नहीं हो पा रही थी.
वे जब भी दीवार को बनाने लगते न जाने कैसे वह टेढ़ी हो जाती थी. शाम को सेठ जी आए और कहा कि आज कोई काम नहीं हुआ?
इस पर राजगीर ने बुढ़िया वाली बात सेठ को बताई.
सेठजी बुढ़िया के पास के गए और बोले- माई! हम तुम्हें सोने के गणेश जी बनाकर देगें, तुम हमारी दीवार सीधी कर दो. यह सुनते ही गणेश जी ने दीवार सीधी कर दी.
सेठ ने बुढ़िया माई को सोने के गणेश जी बनाकर दिए. जिन्हें पाकर बुढ़िया बहुत खुश हुई.
इस कथा को सुनने के बाद गणेशजी से प्रार्थना करें- हे बिन्दायकजी महाराज! जैसे आपने अपनी भक्त बुढ़िया पर कृपा की वैसे ही हम सभी पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखना.
हमें उत्तम संतान देना, संतान की रक्षा करना, उसे सुख-समृद्धि, अन्न-धन से परिपूर्ण रखना ताकि हम इसी तरह भक्तिभाव से आपकी हमेशा पूजा करते रहें. मैं अपने परिवार सहित संतान आपकी पूजा-अर्चना करते संसार के सभी सुखों को भोगते हुए मरने के बाद आपके लोक में आकर आपकी सेवा करूं.
अहोई माता की कई और कथाएं भी हैं जिन्हें अहोई अष्टमी को सुना जाता है. इतनी कथाओं के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि आधे दिन के इस व्रत में आप पूरी तरह अहोई माता के ध्यान में रहें. मन किसी और चीज की ओर न जाए. कोई क्रोध आदि न आए, नींद आदि न आए.
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अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।
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